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________________ KA वही दिन धन्य होगा...! पहचान 'सेकू और अत्यन्तः पापी' व "अधम होने पर भी "भव-सागर को पार कर 'सकू।" वस्तुतः ऐसी भावनाएँ होने पर ही प्राणी कर्मों से मुक्त हो सकता है । ईश्वर को पाने के लिए अथवा इस संसार से मुक्त होने के लिए जब तक साधक ऐसी असह्य 'व्याकुलता महसूस नहीं करता तब तक वह आत्म-शुद्धि नहीं कर सकता और उसके 'न होने पर संसार-मुक्त कैसे हुआ जा सकता है।' कहते हैं कि एक भक्त को किसी महात्मा के पास रहते हुए कई वर्ष हो गये पर उसे लगा कि इतने दिन के पश्चात् भी मुझे भगवान के दर्शन को नहीं हुए ? मन में यह विचार आते ही वह महात्माजी क्यों तंग करने लगा कि इतने वर्षों तक आपकी संगति में रहने पर भी मुझे आपने भगवान के दर्शन अभी तक नहीं करवाये, ऐसा क्यों ? महात्मा जी ने एक दो बार तो उसे समझाया कि आत्मा जब तक शुद्ध न हो जाय, भगवान के दर्शन दुर्लभ हैं। पर जब शिष्य नहीं माना और उन्हें रोज परेशान करने लगा तो एक दिन जब वे और उनका वह शिष्य गंगा में स्नान कर रहे थे तो उन्होंने भक्त को अपने हाथों से पानी में जोर से दबाया। शिष्य पानी में डूबा हुआ था और गुरुजी उसे दबाये हुए थे अतः वह बुरी तरह छटपटा रहा था। किन्तु कुछ मिनिटों में ही गुरु ने अपने हाथ उस पर से हटा लिये और उसे पानी में से निकल जाने दिया। पानी से बाहर आकर शिष्य बहुत दुखी होकर बोला- "भगवन ! आपने ऐसा क्यों किया ? मेरे प्राण उस समय पानी में से निकलने के लिये कितने छटपटा रहे थे?" गुरुजी हंस पड़े और बोले-"वत्स ! मैं तो तुम्हारे रोज के प्रश्न का उत्तर दे रहा था । तुम प्रतिदिन मुझे पूछा करते थे कि मुझे ईश्वर के दर्शन कब होंगे ?' "हाँ, तो मेरे प्रश्न का उत्तर कैसे दिया आपने ?" "मैंने तुम्हें यह बताया था कि तुम पानी में से निकलने के लिए जिस प्रकार छटपटा रहे थे, उसी प्रकार इस संसार-रूपी कीचड़ में से निकलने के लिये भी छटपटाओगे, तभी तुम्हें ईश्वर के दर्शन होंगे।" गुरुजी की बात शिष्य की समझ में आ गई और वह शर्मिन्दा होता हुआ चुप हो गया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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