________________
वही दिन धन्य होगा..!
२०६
दिखावा नहीं चलेगा? बंधुओ, आप यह कभी न भूलें कि भले ही महान् से महान् और विद्वान् संतों के प्रवचन आप सुनें और जीवन भर भी उन्हें नियमपूर्वक प्रतिदिन सुनते रहें । पर अगर उन उपदेशों को आपने अपने आचरण और व्यवहार में नहीं उतरा तो उनका कोई लाभ आपको हासिल न हो सकेगा । चिकने घड़े पर से जिस प्रकार पानी बह जाता है, उसी प्रकार सुना हुआ ढेरों उपदेश आपके एक कान से आकर दूसरे कान से निकल जाएगा।
आप लोग यह सोचते हैं कि हम प्रतिदिन व्याख्यान में आते हैं, अतः लोग तो आपकी तारीफ करते हैं, महाराज भी सराहना करते होंगे । यह विचार कर आप संतुष्ट हो जाते हैं तथा अपने आपको धन्य समझ कर घर लौट जाते हैं। किन्तु भाइयो ! हमने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं कि कांच को रत्न समझ लें और दिखावे को सत्य मानकर उसकी सराहना करने लग जायें । हम तो आपको बार-बार
और स्पष्ट रूप से भी यही कहते आ रहे हैं कि भले ही आप कम सुनो पर उसे ग्रहण करो और आचरण में उतारो । अन्यथा केवल सुनने की परिपाटी का पालन कर लेने से आपको रंचमात्र भी लाभ नहीं हो सकेगा और आप जीवन-भर जहाँ से तहां रहकर अन्त में पश्चात्ताप करेंगे।
इस विषय को फारसी भाषा में बड़े सुन्दर ढंग से कहा गया है
"दो कस मुर्दन, वो हसरत गुर्दन, ये के आं कि आयोक्त वो अमल न करद दोगरां कि किश्त न खुर्द ।"
अर्थात्-दो प्रकार के आदमी जब मरते हैं तो हृदय में हसरतें लेकर और पश्चात्ताप करते हुए मरते हैं। एक प्रकार के व्यक्ति वे होते हैं जो पढ़ तो खूब लेते हैं किन्तु उसे आचरण में नहीं ला पाते, और दूसरी प्रकार के वे, जो जमीन में बीज तो बोते हैं पर फसल का फायदा नहीं उठा पाते।
मेरे कहने का भी अभिप्राय यही है कि आपको आत्मोन्नति के लिये सभी साधन प्राप्त हुए हैं । उत्तम धर्म, जाति, कुल और संत-समागम मिला है नित्य आप मुनियों के द्वारा जिन-वचनों को सुनते भी हैं, किन्तु इतना सब होने पर भी अगर आप अपने जीवन को दोष-मुक्त नहीं कर पाते, इसे अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ न कुछ त्याग-नियमों में नहीं बांध पाते तो फिर इन सब उत्तम संयोगों की प्राप्ति से क्या फायदा हुआ ? कुछ भी नहीं । मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि आपको इन सब
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org