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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग
यह व्यापारी को चौथी भावना बताई गई है और अब पाँचवी भावना पर हम आते हैं -
व्यावहारिक वस्तु दलाली है, इसमें सत्य का परिपालन हो। शुभ धर्म-दलाली करूंगा जब, मैं वही धन्य दिन मानूंगा ।।
आज के युग में दलालों की कमी नहीं है। हर वस्तु की दलाली की जाती है । जमीन, मकान, ऊन, अनाज आदि जो भी कुछ मनुष्य बेचना चाहता है उसे दलाल लोग खरीदने वालों से बात-चीत करके कुछ लाभ स्वयं उठाते हुए बेचने और खरीदने वालों में सम्बन्ध जोड़ देते हैं ।
यही तरीका धर्म के व्यापार में भी काम आता है । संत-मुनिराज एक प्रकार से दलाल ही हैं जो भगवान के वचनों को आप तक पहुंचाते हैं और आपका सम्बन्ध धर्म से तथा ईश्वर से जोड़ने का प्रयत्न करते हैं। जिन-प्ररूपित व्रत, पचक्खान, त्याग, नियम आदि का महत्व आप लोगों को संत ही समझाते हैं और उन आत्मकल्याणकारी तत्त्वों का अनुमोदन कर दलाली का लाभ निस्वार्थ भाव से प्राप्त करते हैं।
दलाली का विचार करते हुए कवि कह रहा है कि व्यावहारिक वस्तुओं की दलाली में अगर सत्यता होती है तो लोग दलाल का विश्वास करते हैं। इसी प्रकार मैं भी अपनी धर्म दलाली में सत्य को प्रतिष्ठित कर सकूगा तथा लोग मेरा विश्वास करेंगे, उसी दिन को मैं अपने जीवन का महत्वपूर्ण दिवस समझगा।
धर्म दलाली का महत्व कम नहीं है, यह भी महान् लाभ का कारण बनता है। महाराज श्रेणिक और श्रीकृष्ण के लिये बताया गया है कि उन्होंने कभी एक नमोकारसी भी नहीं की और कोई बड़ा त्याग भी नहीं किया। किन्तु धर्म-दलाली उन्होंने हार्दिक भावना से खूब की तथा मुमुक्षु प्राणियों को तन, मन और धन से सहयोग दिया। केवल इसी के परिणाम स्वरूप उन्होंने तीर्थंकर-पद की प्राप्ति कर ली। इसीलिये कवि सच्चे हृदय से, और सत्यतापूर्वक धर्म-दलाली करने की पांचवीं भावना भाता है।
अन्त में वह कहता है
सद्गुरु रत्नऋषी वचनों को धारण कर वर्तन में लावो।
आनन्दमय शिव सुख पाऊंगा, मैं वही धन्य दिन मानेगा ॥ - सद्गुरुओं में भी जो रत्न-रूप महान् गुरु हैं उनके वचनों को हृदय में धारण करके आचरण को सर्वथा दोष-मुक्त करके शाश्वत सुख से परिपूर्ण मोक्ष-पद की प्राप्ति करूंगा, वही दिन अपने लिये धन्य मानूंगा।
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