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________________ वही दिन धन्य होगा! २०५ अन्त में उसने दरवार में गुहार की और महाराज ने ऐसे चोर का पता लगाने के लिये बगीचे में चारों ओर पहरेदारों का जाल बिछा दिया। बड़ी कठिनाई से आखिर चोर पकड़ लिया गया और उसे राजा के सम्मुख उपस्थित किया। ___महाराजा श्रेणिक को अपने बगीचे के दुर्लभ आमों को चुराने वाले पर अत्यन्त क्रोध था अतः उन्होंने उसे मृत्यु दण्ड की आज्ञा दे दी। बेचारा भंगी बड़ा घबराया किन्तु आखिर वह भी एक बड़ी विद्या का धनी था अतः उसने कुछ क्षण विचार कर कहा- हुजूर ! मैंने सचमुच ही बड़ा भारी अपराध किया है अतः मैं इसी दण्ड के काबिल हूँ। पर मेरा आपसे एक नम्र निवेदन है।" श्रेणिक ने इशारे से उसे बोलने का आदेश दिया। इस पर भंगी बोला"महाराज ! मैं मर जाऊंगा इसका मुझे दुख नहीं है पर दुःख इस बात का है कि मेरी अपूर्व विद्या मेरे साथ ही चली जाएगी। अतः अगर आप उसे ग्रहण कर लें तो मैं संतोष से मर सकूँगा।' भंगी की बात सुनकर राजा श्रेणिक विचार करने लगे- "बात तो इसकी सही है । आखिर मुझे भी क्यों न यह बात सूझी। यह तो बड़ा उत्तम होगा कि इस भंगी की विद्या में ग्रहण कर लू। जो कि सहज ही सीखने को मिल रही है।" - "तुम्हारी बात सच है । मुझे अभी ही यह सुन्दर विद्या सिखा दो।" भंगी तैयार हो गया और उसने महाराज को विद्या सिखाना प्रारम्भ कर दिया। किन्तु बड़े आश्चर्य की बात यह हुई कि भंगी के समझाने पर भी उनकी समझ में कुछ नहीं आया। यह देखकर राजा बड़े झुंझलाये और बोले"तुम मुझे ठीक तरह से सिखा नहीं रहे हो।" भंगी हाथ जोड़कर बोला-'अन्नदाता ! मैं तो आपको सही बता रहा हूँ पर जाने क्यों आपकी समझ में नहीं आ रहा है। उस दरबार में राजा श्रेणिक के मंत्री अभयकुमार भी उपस्थित थे। राजा और भंगी का प्रश्नोत्तर सुनकर उनके कान खड़े हो गये और कुछ पले विचारकर वे राजा से बोले--' हुजूर ! अपराध क्षमा हो, पर आपके सीखने में भूल हो रही है।" ___ "कैसी भूल ?" राजा ने चौंककर अभयकुमार से पूछा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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