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________________ बही दिन धन्य होगा...! २०.१ व्यापारी जीव ही अपनी गाड़ी में शक्कर भर कर जाता है और शक्कर भरकर ही ले जाता है। __एक दिन मैंने श्री स्थानांग सूत्र के आधार पर आपको बताया था कि व्यापारी जीव चार प्रकार के होते हैं । एक प्रकार के वह जीव जो पुण्यरूपी शक्कर भरकर यहाँ लाते हैं और पुनः यहाँ भी शुभ-करनी करके शक्कर ही भर ले जाते हैं। दूसरे वे जीव जो पुण्य-रूपी शक्कर लाते तो हैं पर उसे यहाँ समाप्त कर डालते हैं यानी अगले लोक में जाने के लिये वह पुनः संचय नहीं करते। दूसरे शब्दों में यहाँ पर वे कुछ भी सुकृत या साधना नहीं करते । तीसरे जीव वे होते हैं, जो पूर्वकृत तो कुछ साथ में नहीं लाते, किन्तु इधर संयम की अटूट साधना करके अपनी गाड़ी पुण्य रूपी शक्कर से ठसाठस भरकर ले जाते हैं। और चौथी प्रकार के अभागे जीव वही होते हैं जो खाली आते हैं और खाली ही जाते हैं। न वे शुभ-कर्मों का कुछ फल साथ में लाते हैं और नहीं यहाँ शुभ-कर्म करके कुछ साथ ही ले जाते हैं। 1 प्रसंगवश मैंने इन चार प्रकार के व्यापारी जीवों के विषय में पुनः संक्षिप्तः रूप से बताया है क्योंकि अब मैं व्यापारी जीवों की पाँच प्रकार की भावनाएं एक कवि के भजन के आधार पर बताने जा रहा हूँ। कवि ने बताया है कि प्रत्येक व्यापारी जीव की चाहे वह संत हो या गृहस्थ, पाच प्रकार की भावनाएं होती हैं । किन्तु जो त्यागी और संन्यासी होता है वह सांसारिक व्यापार की कला को अपनाकर भी धर्म का व्यापार करता है जब सुकृत द्रव्य कमाऊंगा, मैं वही धन्य दिन मानूंगा। .: आज ससार के सभी व्यक्ति अधिक से अधिक धन कमाने की चिन्ता में रहते हैं । उसकी तृष्णा का कभी अन्त नहीं आता। उनके लिये पेट भरने की समस्या बड़ा विकट रूप धारण किये रहती है। जबकि एक वैष्णव संत हरिरामदास जी महाराज तो यह कह गये हैं तू कहा चित करै नर तेरिहि, तो करता सोई चित करेगी। जो मुख जानि दियो तुझि मानव, सो सबहन को पेट भरेगो।। कूकर एकहि टूक के कारण, नित्य घरोघर बार फिरेगो। दास कहे हरिराम बिना हरि, कोई न तेरो काम सरेगो।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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