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________________ क बलवन्तम् न बाधते शीतम् १६५ यह मानव शरीर जो जीव को मिला है, वह केवल खाने-पीने और मौज करने के लिए नहीं, अपितु देश और धर्म की रक्षा के लिए तथा आत्म-कल्याण करने के लिए मिला है। अतः प्राणों की परवाह किये बिना व्यक्ति को चाहिए कि वह इनकी रक्षा करे । संस्कृत में एक कहावत है "कार्यम् साधयामि वा देहम् पातयामि ।" आत्मविश्वासी और दृढ़ प्रतिज्ञ व्यक्ति जिस कार्य को करने का बीड़ा उठाता है, उसे सम्पन्न करके ही छोड़ता है। वह कहता है--'या तो काम पूरा ही करूंगा अन्यथा अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दूंगा।' ऐसे दृढ़ विचारों वाले व्यक्ति ही हाथ में लिये कार्य को पूर्ण कर सकते हैं। कविता में अब बताया गया है मैं ये कहता हूँ कि तुम गर्दन न काटो और की, ये नही कहता कि अपना सर कटाना छोड़ दो। इन पंक्तियों से अभिप्राय यही है कि व्यक्ति को चाहे अपना बलिदान देना पड़े तो वह खुशी से दे, किन्तु कभी भी दूसरे की गर्दन काटने का प्रयत्न न करे। जो व्यक्ति किसी और का बुरा सोचता है, उसका कभी भी भला नहीं होता। कहा भी जाता है 'गड्ढा खोदे और को, ताहि कूप तैयार ।' एक उदाहरण से यह कहावत स्पष्ट हो जाती हैजैसे को तैसा फारस देश के बादशाह का गुलाम एक बार भाग गया। उसे पकड़ने के लिए चारों ओर सैनिक भेजे गए तथा वह गुलाम पकड़कर ले आया गया। अगले दिन बादशाह जब दरबार में बैठे थे, गुलाम को सजा देने के लिए उपस्थित किया गया । यद्यपि भाग जाने की सजा मृत्यु दण्ड नहीं होती किन्तु बादशाह का मंत्री उस गुलाम से बहुत रुष्ट था अतः बोला -'हुजूर, इस व्यक्ति को फांसी पर लटका देना चाहिये।" अब बादशाह ने गुलाम से पूछा-"तुम अपनी सफाई में क्या कहना चाहते हो ?' वह दास नम्रतापूर्वक बोला-“जहाँपनाह ! मैं भागा था इसलिए दोषी अवश्य हूँ। किन्तु मैंने किसी की हत्या नहीं की अतः मुझे मार डालने से आपका न्याय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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