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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग उठाकर उस पर कमीज को झंडी की तरह टांग लिया। इसके पश्चात् उसे हाथ में लेकर हिलाता हुआ वह उस दिशा की ओर दौड़ चला जिधर स्टेशन था और जहां से गाड़ी आने वाली थी।
अब देखिये कि इधर से बालक अपने खून से कमीज रंगकर दौड़ रहा था और उधर से ट्रेन के चालक की दृष्टि दूर से दौड़कर आते हुए और हाथ में कुछ लाल-लाल सा कपड़ा हिलाते हुए बालक पर पड़ गई । दाल में कुछ काला समझ कर उसने फौरन गाड़ी को रोकने के लिये ब्रेक लगा दिया। पर मोटर के समान ट्रेन तो एकदम रुकती नहीं पर धीरे-धीरे उस बालक के समीप पहुंचने तक वह रुक गई। हो-हल्ला मच गया तथा लोग गाड़ी से उतर कर यह जानने का प्रयत्न करने लगे कि क्या हुआ है । पर इन सबसे पहले ड्राइवर तथा गार्ड वगैरह सभी शीघ्रता पूर्वक उस लहूलुहान लड़के के समीप पहुंच चुके थे।
सबने मिलकर उसे सम्हाला तथा उसके इस प्रकार दौड़ने का कारण पूछा। बालक ने मन्द-स्वर से कहा- "आगे पटरी टूटी हुई है । गाड़ी गिर जाती इसलिए मैंने अपनी कमीज को खून से रंगकर झंडी बनाई है। कृपया आप ट्रेन को उधर न जाने दें।"
___ यह कहते-कहते बालक अचेत हो गया क्योंकि उसके शरीर से बहुत खून बह गया था। पलक झपकते ही लोगों को बात समझ में आ गई और देश के उस नन्हें तथा बफादार नागरिक के प्रति उन सबका मस्तक झुक गया। सब लोग अपना बलिदान देकर इतने लोगों की जान बचाने वाले उस बालक के लिये आँस बहाने लगे।
तो बन्धुओ, जो प्राणी अपने देश, समाज व धर्म के प्रति वफादार होते हैं तथा उनसे अनुरक्ति रखते हैं वे देश-धर्म का भला, ख्याति-लाभ, नामवरी या पुरस्कार प्राप्ति की इच्छा से नहीं करते । उनका हृदय केवल अच्छा कार्य करना चाहिए तथा सबका भला हो ऐसा करना चाहिए, यही कहता है और वे अपने हृदय की इसी प्रेरणा के वशीभूत होकर कार्य करते हैं ।
तो कवि भी आप से यही कह रहा है कि अपना फर्ज और देश का अपने ऊपर कर्ज समझकर आप उसकी सर्वाङ्गीण उन्नति के लिए प्रयत्न करें। आगे कहा गया है
"डाल दो खतरे में अपनी जिन्दगी को शौक से
धर्म की रक्षा में अपना तन बचाना छोड़ दो।'
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