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________________ कं बलवन्तम् न बाधते शीतम् १६३ रहें और कुर्सियाँ तोड़ते रहें तो यह उनके लिये शर्म की बात है। इसीलिये कवि उन्हें समझा रहा है धर्म का और देश का कितना है वाजिब तुम पै हक, अब जरूरी फर्ज को तुम भूल जाना छोड़ दो। कहते हैं - कुर्सी प्राप्त कर लेना और अपने नाम को फैला देना कुछ भी नहीं है, जब तक कि व्यक्ति अपने पद के अनुरूप कार्य न करे । उसे कुर्सी काम करने के लिए जनता प्रदान करती है, अपना घर भरने के लिये नहीं। कुर्सी-प्राप्त व्यक्ति को सोचना चाहिये कि देश और धर्म का उस पर कितता कर्ज है. और उससे कार्य लेने का उसे कितना अधिकार है ? इसलिये प्रत्येक समर्थ व्यक्ति को अपना फर्ज कभी नहीं भूलना चाहिये। हमारे इतिहास में तो ऐसे अनेकों उदाहरण मौजद हैं कि बिना किसी पद को प्राप्त किये और बिना ख्याति लाभ की इच्छा के साधारण व्यक्तियों ने भी देश के लिये अनेक चमत्कारिक कार्य किये हैं। सच्चा परोपकारी ___मैंने एक बार एक बालक की कहानी पढ़ी थी आपने भी सुनी होगी। नाम मुझे याद नहीं है, इतना ध्यान है कि वह बालक घूमता-घामता ट्रन की पटरियों के किनारे-किनारे कहीं जा रहा था। अचानक एक स्थान पर उसकी दृष्टि पड़ी और उसने देखा कि किन्हीं दुष्ट व्यक्तियों ने वहाँ पर पटरियाँ उखाड़ दी हैं ताकि ट्रेन उस जगह आते ही एक्सीडेंट का शिकार बने और परिणाम स्वरूप अनेकों व्यक्तियों की प्राणहानि के साथ ही सरकार को क्षति हो। ___ यह देखते ही वह पन्द्रह या सोलह वर्ष का बालक बहुत घबराया। उसने देखा कि स्टेशन वहाँ से थोड़ी ही दूर है, सिगनल गिरा दिया गया है, क्योंकि गाड़ी के वहाँ से रवाना होने में थोड़ा ही वक्त है । बालक विचार करने लगा कि अगर इस समय कुछ उपाय नहीं हो सका तो गाड़ी आ जाएगी और देखते-देखते ही अनेकों व्यक्तियों का संहार हो जाएगा । समय नहीं था अतः उसने किसी नुकीले पत्थर से कुछ क्षणों में ही अपने शरीर के किसी हिस्से में बड़ासा घाव कर लिया और जब तेजी से खून निकलने लगा तो अपनी कमीज को खोल कर उसी खून से रंग लिया । कुछ मिनिटों में ही उसने यह कार्य कर लिया और आस-पास से कोई लकड़ी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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