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कं बलवन्तम् न बाधते शीतम्
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कर लेते हैं, दिन में और रात्रि में भी चाय, कॉफी आदि गर्म पेय ग्रहण करते हैं तथा मोटे-मोटे गद्दे और रजाइयों में दबकर शयन करते हैं। और इसलिये शीत का कोप आपको सहना नहीं पड़ता।
किन्तु जिनके पास शीत-निवारण के साधन नहीं होते ऐसे अभावग्रस्त सैकड़ों व्यक्ति सर्दी का भयानक कष्ट सहते हैं तथा कथड़ी-गुदड़ी ओढ़कर पड़े रहते हैं । फिर भी जब सर्दी सहन नहीं हो तो घास-फूस जलाकर बड़ी कठिनाई से रात्रि व्यतीत करते हैं । यह तो हुए वे लोग जो कुछ तो सर्दी से बचाव कर ही लेते हैं, पर अनेकों व्यक्ति तो बेचारे इनसे भी गये बीते होते हैं जिनके पास न घर होता है और न वस्त्र ही। बम्बई जैसे शहरों में तो सैकड़ों व्यक्ति फुटपाथ पर ही पढ़े-पढ़े ठिठुरते रहते हैं और सर्दी से अकड़ कर मृत्यु के मुंह में जा गिरते हैं।
यह तो हुई साधारण व्यक्तियों की बात मैं अब संत-मुनिराजों के विषय में कहने जा रहा हूँ। यद्यपि उनके पास भी शीत-निवारण के साधन नहीं होते और न ही गरम वस्त्र या रजाई गद्दे ही होते हैं, क्योंकि वे उतना ही वस्त्र अपने पास रखते हैं, जिसे स्वयं उठा सकें। परिणाम यही होता है कि वे भी शीत का प्रकोप सहने के लिये बाध्य होते हैं।
किन्तु बन्धुओ, आप यह न विचार लें कि उन अभावग्रस्त प्राणियों में और साधु में कुछ अन्तर नहीं होता। दोनों में महान अन्तर होता है। और वह अन्तर इस प्रकार कि-वे मनुष्य, जिनके पास शीत से बचने के लिये साधन नहीं होते, यद्यपि वे शीत परिषह को सहन करते हैं किन्तु हाय-हाय करके, अपने भाग्य को कोसते हुए तथा ईश्वर को भी गालियाँ देते हुए सर्दी का समय बिताते हैं ।
___ इसके विपरीत साधु त्याग की भावना से प्राप्त ऐश्वर्य और शीत तथा ग्रीष्मादि से बचाव के समस्त साधनों को स्वयं छोड़ देता है। वह गरम वस्त्रों की प्राप्ति सुलभ होने पर भी मर्यादित वस्त्र रखता है । अग्नि के स्पर्श का त्याग करता है तथा आत्मिक दृढ़ता रखते हुए कर्मों की निर्जरा के उद्देश्य से पूर्ण सम-भाव एवं शांति से शीत-परिषह सहन करता है । यद्यपि शरीर का स्वभाव है कि उसे अत्यधिक शीत कष्टकर होता है, किन्तु सच्चे संत शरीर के प्रति मोह नहीं रखते अतः शीत के बचाव के लिये भी प्रयत्न नहीं करते । चाहे शीत हो या ताप, वे शरीर के सुख या कष्ट से सम्पूर्णतया ध्यान हटाकर अपने मन को चिन्तन-मनन एवं स्वाध्याय आदि की ओर मोड़ लेते हैं । भयंकर शीत की रात्रियों में भी वे उससे बचने के लिये स्थानांतरण नहीं करते तथा अपने स्वाध्याय आदि के समय का तनिक भी उल्लंघन नहीं करते।
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