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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग
बहता पानी निर्मला, पड्या गंदेला होय ।
साधु तो रमता भला, दागन लागे कोय । देखा जाता है कि पानी जब तक बहता रहता है, तब तक वह पूर्णतया निर्मल रहता है । किन्तु अगर वही पानी एक स्थान पर इकट्ठा हो जाय तो अशुद्ध व मलिन हो जाता है । जिस स्थान पर पानी रुकता है उसे मराठी भाषा में 'डबक' कहते हैं और हिन्दी में गड्ढा'। खैर उसे कुछ भी कहें, पर यह सत्य है कि उस स्थान पर पानी गदा, दुर्गंधपूर्ण हो जाता है तथा वहाँ काई जमा हो जाती है।
- इसी प्रकार साधु के लिये भी कहा जाता है कि अगर वह एक ही स्थान पर अधिक समय तक ठहरे तो उसकी आत्मा अलिन हो जाती है। आप विचार करेंगे कि ऐसा क्यों ? वह इसलिए कि अगर वह एक ही गाँव या शहर में अधिक समय रहे तो उसका वहाँ के व्यक्तियों के प्रति मोह हो जाएगा और एक ही स्थान पर अधिक ठहरने से कुछ न कुछ परिग्रह भी बढ़ेगा। इसी प्रकार और भी कुछ न कुछ अप्रिय घट सकता है, अतः भगवान ने आदेश दिया है कि साधु विचरण करता रहे तथा गाँव छोटा हो तो वहाँ पर केवल एक रात्रि के लिये ही ठहरे ।
यहाँ एक बात ध्यान से समझने की है कि शास्त्रों के अनुसार समय का प्रमाण इस प्रकार है छोटे गाँव में एक रात्रि, यानी अगर साधु सोमवार को गाँव में पहुंचे तो अगले सोमवार की रात्रि आने से पहले वहाँ से रवाना हो जाय । यानी एक सप्ताह ठहरे । इसी प्रकार बड़े शहर में पांच रात्रि यानी उन्तीस दिन रहे ।
कहने का अभिप्राय यही है कि विशेष कारण और चार महीने के वर्षावास के अलावा साधु ग्रामानुग्राम विचरण करता रहे और धर्म-प्रचार करे । गाथा में आगे बताया है कि विचरण वह किस प्रकार करे ? साधु जो कि सांसारिक सुखों से विरक्त हो जाता है तथा अपनी इन्द्रियों को काबू में कर लेता है वह फिर भूख-प्यास शीत-ग्रीष्म, किसी भी परिषह की परवाह नहीं करता। और इसलिये रूक्ष वृत्ति रखता हुआ यानी स्निग्ध भोजन आदि की इच्छा न करता हुआ पूर्ण सन्तोष-वृत्ति के साथ वह मार्ग में चले और रात्रि-विश्राम करे ऐसा संयमी-साधक के लिए विधान किया गया है।
___ आगे कहा गया है कि वह शीत परिषह को भी सहन करे और उससे बचने के लिये स्वाध्याय आदि के समय का उल्लंघन करके स्थानांतरण न करे । शीत परिषह आप जानते ही हैं कि शीत का प्रकोप कैसा भयंकर होता है ? उससे बचाव
शति का प्रकोप कसा भयकर होता है । उससे बचाव करने के लिये आप कितने ही गर्म वस्त्र पहनते हैं, हीटर आदि जलाकर कमरे गर्म
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