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आनन्द प्रवचन | पाचवां भाग
सुनकर उसे देखने के लिये उनके यहाँ पधारे। शालिभद्र की माता ने महाराज को घर आया हुआ देखकर अपार प्रसन्नता से अपने पुत्र को पुकारा-"बेटा ! नीचे आओ, अपने यहाँ स्वयं महाराज पधारे हैं।" - शालिभद्र ने वहीं से अनमने भाव से उत्तर भिजवा दिया--"भंडार में डलवा दो।" वे यह भी नहीं जान पाये कि राजा क्या होता है ?
तब मा ने स्वयं जाकर समझाया-"अरे बेटा ! हमारे स्वामी आए हैं अतः उनके दर्शन करलो।"
यह सुनकर शालिभद्र जी चौंक पड़े और सोचने लगे- "अभी तक तो मैं स्वयं को ही अपना मालिक समझता था पर क्या ये मेरे भी मालिक हैं ? तब तो मुझे अब ऐसा करना है कि मेरा कोई भी स्वामी न बन सके।"
यह सोचते-सोचते ही उन्हें विरक्ति हो गई एवं उन्होंने अपनी ऋद्धि एवं बत्तीस पत्नियों को छोड़कर संयम ग्रहण कर लिया। और जिस प्रकार पुण्य रूपी शक्कर की गाड़ी भरकर उस जन्म से लाए थे, उसी प्रकार पुनः शुभ-कर्म रूपी शक्कर गाड़ी में भरकर इस लोक से भी ले गये। इस प्रकार भरत चक्रवर्ती आदि के भी उदाहरण हमारे शास्त्र में मौजूद हैं।
(२) अब हम श्री स्थनांग सूत्र में वर्णित दूसरे प्रकार के व्यापारी जीव के विषय में विचार करते हैं । शास्त्र के अनुसार दूसरी तरह का व्यापारी जीव वह बताया गया है जो पिछले जन्म से तो गाड़ी खाली लाता है, किन्तु इस जन्म में उसे भरकर ले जाता है।
खाली गाड़ी से तात्पर्य पुण्य-हीनता है । पुण्यों के अभाव में वह इस जन्म में तो कुछ प्राप्त नहीं करता किन्तु धर्म-ध्यान, जप-तप एवं चारित्र की आराधना करके अगले जन्म के लिये पुण्य-रूपी शक्कर अपनी गाड़ी में भर लेता है।
हमने देखा है, बम्बई जैसे बड़े नगर में अनेक गुमास्ते बड़ी-बड़ी पेढ़ियों पर काम करते हैं । वे दिन भर मेहनत करके अपने मालिक को लाखों रुपयों का नफा दिलाते हैं। किन्तु स्वयं उन्हें कठिनाई से गुजारा करने लायक ही पैसा मिलता है। किन्तु वे वफादारी से कार्य करते हैं और अपने मालिक से प्रथम ही इतना वायदा करा लेते हैं कि हम अपना नित्य-नियम स्वाध्याय एवं भजन-पूजन आदि करके काम पर आएँगे अतः कभी देर भी हो जाय तो आप हमें क्षमा कीजियेगा।
इस प्रकार इस जीवन में यद्यपि वे सुख के साधन अपने लिये नहीं जुटा पाते किन्तु परलोक के सुख की सामग्री संचित कर लेते हैं। मुनिवर हरिकेशी चांडाल कुल
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