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कर्तव्यमेव कर्तव्य...!
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क्षेत्र और उत्तम पुरुषों की तथा संतों की संगति का भी अवसर मिल गया है तो क्यों न हम इनका लाभ उठाएं ? पर इन सबका लाभ तभी उठाया जा सकता है जबकि हम जिन-वचनों पर विश्वास करें, उनके अनुसार श्रावक या साधु-धर्म को अंगीकार करें तथा अंगीकार करने के पश्चात उनका पूर्ण दृढ़तापूर्वक पालन भी करें। अन्यथा व्रत-नियम ग्रहण तो कर लिये पर तनिक भी भूख या प्यास सहन करने का अवसर आया और व्रतों को ढील दे बैठे तो व्रतों का ग्रहण करना और न करना क्या लाभ पहुंचाएगा ? अनेक व्रतों का पालन करने वाले साधक के मार्ग में तो क्षुधा तथा पिपासा आदि बाईस परिषहों में से कोई भी परिषह कभी भी आ सकता है। उस समय अगर हम कच्चे पड़ गए तो फिर कुछ भी बनने वाला नहीं है। ठीक है कि पूर्व पुण्यों के संयोग से हमें पांचों इन्द्रियों से और मन, विवेक तथा स्पष्ट वाणी आदि से परिपूर्ण शरीर मिल गया है पर इस शरीर को पाकर केवल पूर्व पुण्यों से प्राप्त सुख-भोग हमने कर लिया पर भविष्य के लिये कुछ संचय नहीं किया तो खाली हाथ ही जाना पड़ेगा।
इस विषय में जीव को व्यापारी के रूप में बताकर ठाणांग सूत्र में बड़े सुन्दर ढंग से समझाया गया है कि इस संसार में चार प्रकार के व्यापारी जीव आते हैं।
(१) प्रथम प्रकार का व्यापारी जीव वह होता है जो शक्कर की गाड़ी भर कर लाता है और पुनः शक्कर भरकर ही ले जाता है । अर्थात् पूर्व जन्म में वह शुभ करणी करके पुण्य साथ लाता है, जिनसे इस जन्म में सुखी रहता है और इस जन्म में शुभ कर्म करके पुनः पुण्य संचित करता है जिनके द्वारा परलोक में सुख हासिल करता है।
सेठ शालिभद्र ऐसे ही जीव थे। उनके पूर्व जन्म में संचित किये हुए इतने पुण्य थे कि वे यह भी नहीं जानते थे कि हमारे गाँव में हमारे राजा कोई श्रेणिक भी हैं । उनकी ऋद्धि का वर्णन करना संभव नहीं है। बताया जाता है कि उनके यहाँ स्वर्ग से तेतीस पेटियाँ प्रतिदिन उतरा करती थीं जो धन-धान्य, वस्त्राभूषण एवं अमूल्य रत्नादि से परिपूर्ण होती थीं। इससे सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है कि शालिभद्र जी किस ऐश्वर्य में पले होंगे । और इतना ऐश्वर्य तथा संसार का सुख उन्हें किस प्रकार मिला ? पूर्वकृत पुण्यों के उदय से ही तो।
पर पूर्व-पुण्यों के खजाने को उन्होंने उस जन्म में ही नहीं समाप्त कर दिया वरन अगले जन्मों के लिये भी नवीन पुण्य उपार्जन कर लिये। संयोग इस प्रकार बना कि एक बार महाराजा श्रोणिक शालिभद्र के यहाँ की ऋद्धि का अभूतपूर्व वर्णन
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