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________________ १६६ आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग वाल्मीकि ने अपने एक श्लोक में कहा है व्यसने वार्थकृच्छे वा भये वा जीवितान्तगे। विमृशंश्च स्वया बुद्ध्या धृतिमानावसीदति ।। अर्थात्-शोक में, आर्थिक संकट में अथवा प्राणान्तकारी भय उपस्थित होने पर भी जो अपनी बुद्धि से दुःख निवारण के उपाय का विचार करते हुए धैर्य धारण करता है, उसे कष्ट नहीं उठाना पड़ता। दार्शनिक रूसो का भी कथन है"'Patience is Witter, But its fruit is sweet." -धैर्य कड़वा होता है पर उसका फल मधुर होता है । कहने का अभिप्राय यही है कि धैर्य की परीक्षा संकट में होती है और जो महापुरुष उस कसौटी पर खरा उतर जाता है, उसे अपने धीरज का बड़ा उत्तम और मधुर फल मिलता है। धर्म-परीक्षा धीरज के पश्चात दोहे में धर्म के लिए कहा गया है कि धर्म की परीक्षा भी आपत्तिकाल में ही की जाती है कि व्यक्ति उस समय अपने धर्म पर किस प्रकार दृढ़ रहता है। 'अन्तगढ़ सूत्र' में बताया गया है कि सेठ सुदर्शन अपने माता-पिता से भगवान महावीर के दर्शनार्थ जाने की इजाजत मांगते हैं। सुदर्शन जी के माता-पिता यह सुनकर अत्यन्त व्याकुल हो उठते हैं और कहते हैं-"बेटा ! वहाँ जाने का नाम भी मत लो। हम भगवान के दर्शन करने से तुम्हें नहीं रोकते, किन्तु मार्ग में हत्यारा अर्जुनमाली घूमता है जो यक्ष के प्रभाव से प्रतिदिन कई व्यक्तियों की नृशंसता से हत्या कर देता है तुम्हीं बताओ हम कैसे अपने पुत्र को मौत के मुंह में धकेल सकते हैं ? अच्छा तो यही है कि तुम यहीं से पूर्ण भक्ति के साथ भगवान को वन्दन कर लो। प्रभु तो अन्तर्यामी हैं, वे तुम्हारी वन्दना कबूल कर लेंगे । उस मार्ग पर न जाने के लिये तो यहाँ के राजा ने भी मुनादी करवा दी है और इसीलिये उधर कोई घास-फूस लेने भी नहीं जाता।" ___ सुदर्शन सेठ ने अपने पिता की बात बड़ी शांति से सुनी और नम्रतापूर्वक बोले-"पिताजी ! आपका फरमाना सही है, कोई भी पिता अपने पुत्र को इस प्रकार आज्ञा नहीं दे सकता। पर भगवान के दर्शन तो बड़े दुर्लभ हैं और ऐसा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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