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कटिबद्ध हो जाओ ! : खर्च करते हैं और साथ में उन लोगों का कार्य भी निकल जाता है जो अधिक खर्च नहीं कर सकते । इस प्रकार कम खर्च में उनके यहाँ अधिक शादियाँ हो जाती हैं। पर आप ऐसा सोचने वाले कितने हैं ? गरीबों को सहारा देना तो दूर, श्रीमन्त व्यक्ति अधिक से अधिक खर्च करके मध्यम श्रेणी के व्यक्तियों को कठिनाई में डाल देते हैं। मध्यम श्रेणी के लिये मैंने इसलिये कहा है कि निर्धन व्यक्ति, जिनका समाज में विशेष स्थान नहीं होता, जैसा भी बनता है खर्च करके अपने कार्य निपटा लेते हैं, क्योंकि कोई उनकी निन्दा नहीं करता।
किन्तु लखपति और करोड़पति न होने पर भी मध्यम वर्ग के व्यक्ति अपनी योग्यता, शिक्षा और उच्च पदवियों के कारण समाज में अपना उच्च स्थान रखते हैं और उनका गौरव श्रीमन्तों से कम नही होता। वे कीति और प्रतिष्ठा तो बहुत अजित कर लेते हैं किन्तु लाखों रुपया उनके पास शादियों में लगाने के लिए नहीं होता। इधर पैसे वाले होड़ा-होड में अधिक से अधिक खर्च करके उन्हें कठिनाई में डाल देते हैं ।
मैंने सुना था कि जयपुर के धनी व्यक्ति बीस-बीस हजार तो केवल रोशनी के प्रबन्ध में ही खर्च कर देते हैं । इस हिसाब से शादियों में कितना व्यय किया जाता होता? क्या मध्यम श्रेणी का व्यक्ति इस प्रकार लाखों रुपये एक-एक विवाह में खर्च कर सकता है ? नहीं, इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए आपको दहेज आदि की प्रथाओं में सुधार करना चाहिए ।
- मारवाड़ में तो लोगों ने मीटिंग करके एक 'धाम भरण' बाँधा है, ऐसा मालूम हुआ है। किन्तु उस पर कितना अमल होता है यह कहा नहीं जा सकता। इसके अलावा दहेज आदि की प्रथा में तो उधर भी कोई सुधार हुआ हो यह बात दिखाई नहीं देती। एक कवि ने कहा हैलड़के का जब ब्याह रचावें, श्री मुख से श्रीमान् सुनावें,
चाहिये तीस हजार । घड़ी अगूठी सूट चाहिये, सैंडल चप्पल बूट चाहिये,
हार रेडियो कार । इस मशीन हो सोने वाली, सोफा, सैट कटोरी थाली,
मेज कुसियां चार । ऐसे आते कई बराती, पीते मद्य शर्म न आती,
गिरते बीच बाजार। फैला ऐसा भ्रष्टाचार ....."
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