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________________ कटिबद्ध हो जाओ! - पिता की बात सुनकर लड़कों ने एक-एक करके उस गट्ठर को तोड़ने की कोशिश की । किन्तु किसी से भी वह टूट नहीं सका। अन्त में हताश होकर उन्होंने पुनः उसे पृथ्वी पर पटक दिया । देख हाल उसने पुत्रों का, उस गट्ठर को खोल दिया। एक-एक लकड़ी को तोड़ो, यह उनको आदेश दिया। तब तो उन्होंने आसानी से, सटपट उनको तोड़ दिया। कहा पिता ने क्या तुमने कुछ, इस शिक्षा पर ध्यान दिया । पिता ने जब देखा कि लड़कों में से किसी से भी वह गट्ठर नहीं टूटा तो उसने भारी को बोलकर एक-एक लकड़ी अलग कर दी और कहा-"अब इनको एक-एक करके तोड़ो!" फिर क्या था, लड़कों ने एक-एक लकड़ी उठाई और आसानी से उन्हें तोड़ डाला। इस पर पिता ने कहा- "क्या इस कार्य से तुम्हें कुछ शिक्षा मिली ?" लड़के चुप रहे, उन्हें कुछ नहीं सूझा । यह देखकर पिता ने कहा देखो मेरे प्यारे पुत्रो ! यही एकता का है सार । जब तक ये सब मिली हुई थी, टूट सका नहीं तुम से मार ॥ इसी तरह तुम भी हिलमिलकर, अगर रहोगे आपस में। क्या मजाल है प्रबल शत्र भी, जो तुमको कर ले बस में ॥ भिन्न-भिन्न हरहने से पुत्रो, दुश्मन तुम्हें दबायेगा। बिखरे हुए काष्ठ सम तुमको, खंड खंड कर डालेगा। पिता कहता है-'पुत्रो ! इस गट्ठर ने तुम्हें एकता की शिक्षा दी है । जब तक ये संगठित थीं यानी इनमें एकता थी, तब तक इन्हें तुम तोड़ नहीं सके । किन्तु ज्यों ही ये बिखरी, तुम लोगों ने अलग-अलग पाकर इन्हें तोड़ डाला। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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