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________________ १५० आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग हैं पर वे संगठित नहीं रहते इसलिये सरकार को झुकाने की बात तो दूर है, वे . अपना सोचा हुआ स्वयं भी अमल में नहीं ला पाते। आज आप में से और हम लोगों में से भी अनेक व्यक्ति देश, काल और वस्तु स्थिति को देखते हुए पुरानी परम्पराओं में कुछ सुधार करना आवश्यक समझते हैं, किन्तु वे हो नहीं पाते क्योंकि हम सबके विचार ही आपस में नहीं मिलते। उलटे कविता में बताये गये पिता के उन पुत्रों के समान आपस में एक-दूसरे को उपालम्भ देते हैं, एक-दूसरे पर आक्षेप करते हैं और मौका मिलने पर औरों को बदनाम करने से भी नहीं चूकते। ऐसी स्थिति में किस प्रकार सामाजिक या धार्मिक-सुधार हो सकता है ? यह ठीक है कि कभी-कभी चन्द व्यक्ति स्टेज पर खड़े होकर अपने विचार प्रस्तुत करते हैं किन्तु वे कार्यान्वित किस प्रकार हो सकते हैं, जबकि अन्य सभी व्यक्ति उन विचारों पर एकमत न हों और उन्हें अमल में लाने का प्रयत्न न करें। कविता में आगे कहा गया है हो हताश अंत में उसने, मन में ऐसा किया विचार । दे उत्तम दृष्टान्त ऐक्य का, इनका अब मैं कहं सुधार ॥ ले गट्ठर लकड़ी का उसने, उनके सम्मुख फेंक दिया। जोर लगाकर इसे तोड़ दो, ऐसा उसने हुक्म दिया । __ आपस में निरन्तर झगड़ने वाले पुत्रों के पिता ने जब देखा कि समझाने से उसके लड़के नहीं समझते तो उसने उनकी अक्ल ठिकाने लाने के लिए एक उपाय सोचा । वह उपाय यह था कि उसने लकड़ियों का गट्ठर मंगवाया और उसे अपने लड़कों के सामने रखते हुए बोला- मैं देखना चाहता हूँ कि तुममें कितनी ताकत है ? कौन इस बंधे हुए गट्ठर को तोड़ सकता है ? जरा तोड़कर बताओ!" पर परिणाम क्या निकला ? यह बताते हैं किया जोर बहुतेरा सबने, टूट सका ना वह गट्ठर । फेंक दिया पृथ्वी पर सबने, थके सभी ताकत कर कर ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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