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कटिबद्ध हो जाओ !
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की हैं. वे कब संभव होंगी ? जबकि आप लोगों में संगठन होगा । इसलिए स्थान-स्थान पर अधिवेशन करते हुए तथा लोगों को अपने विचार समझाते हुए और उनके भी विचार लेते हुए उनका पालन करना आपका प्रथम कर्तव्य है । इस प्रकार आपको संगठित होकर कार्य करना है और सफलता तभी मिलेगी जब श्रावक संघ प्रत्येक कार्य करने में एकमत होगा ।
संगठन से किस प्रकार सफलता मिलती है, यह किसी कवि के द्वारा लिखी कई एक सीधी-साधी कवितामय लघु कथा से आपको ज्ञात हो सकता है । कविता इस प्रकार है
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कविता का अर्थ बिलकुल सरल है । इसमें कहा गया है कि एक व्यक्ति के कई पुत्र थे, किन्तु वे सब अज्ञानी और अविवेकी थे । इसी कारण वे सब आपस में निरर्थक और नगण्य बातों को लेकर सदा झगड़ते रहते थे । पिता ने नाना प्रकार से समझाते हुए उन्हें आपस में प्रेम और संप रखने के लिये कहा । किन्तु उसका सारा प्रयत्न निष्फल गया ।
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एक पिता के कई पुत्र थे, पर वे सब थे बड़े गँवार । कलह परस्पर उनमें अक्सर,
होती रहती थी निस्सार ॥ किया बहुत उद्योग पिता ने,
पुत्रों को समझाने का । मगर हुआ निष्फल सब उसका, सुतविद्व ेष
मिटाने का ।।
कहानी बड़ी सरल है पर उससे बड़ा गम्भीर अर्थ भी लिया जा सकता है । जैसे - हम भी परम पिता भगवान महावीर के पुत्र और अनुयायी हैं, लेकिन दिगम्बर, श्वेताम्बर मन्दिरमार्गी, स्थानकवासी एवं तेरापंथी आदि अपने आपको मानकर आपस में भेदभाव रखते हैं । परिणाम यह होता है कि सरकार के द्वारा किसी बात को मनवाने की शक्ति हम में उत्पन्न नहीं होती। अगर हममें से प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को किसी सम्प्रदाय का ठेकेदार न मानकर सिर्फ जैन-धर्म को मानने वाला जैन कहे और इस प्रकार एक होकर बुलन्द आवाज से मांग करें तो क्या हमारी माँग को सरकार ठुकराने की हिम्मत कर सकती है ? नहीं, बहुमत के समक्ष तो उसे झुकना ही पड़ेगा, ईसाई और पारसी आदि धर्मों के अनुयायी इने-गिने हैं । किन्तु वे संगठित रहते हैं अतः अपने इरादों में सफल हो जाते हैं। इधर जैनधर्म के अनुयायी लाखों
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