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कटिबद्ध हो जाओ !
धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो !
इस विश्व में जो भी व्यक्ति जन्म लेता है, उसका यह कर्तव्य होता है कि वह जिस धर्म में और जिस जाति में उत्पन्न हुआ हो उसके लिये कुछ न कुछ करे । देश, धर्म और कौम का उस पर एक प्रकार से ऋण होता है और वह ऋण इस प्रकार माना जाता है कि वह जहां जन्म लेता है वहां की धरती से अपने शरीर को टिकाता है, अपनी जाति और समाज में शिक्षा प्राप्त करता है तथा धर्म के द्वारा उत्तम संस्कारों को अपनाता है। दूसरे शब्दों में वह जो कुछ भी होता है अपनी मातृभूमि, धर्म और समाज की देन होता है। अतः उस ऋण को चुकाने के लिए उसे केवल अपना और अपने परिवार का ही नहीं, अपितु देश, धर्म और समाज का ध्यान भी रखना चाहिये ।
आप योग्य बनकर जो कुछ कमाते हैं, उससे अपने परिवार का पालन-पोषण तो करते ही हैं किन्तु उस धन का कुछ भाग औरों के लिये या परमार्थ के लिये खर्च करना भी बावश्यक है।
संत-महापुरुष आपको यही उपदेश देते हैं कि आप अपना और साथ ही दूसरों का भी भला करो । संतों को उपदेश देने का निषेध नहीं है। वे आपको मार्ग सुझा सकते हैं, किन्तु बापको मजबूर नहीं कर सकते। संतों की बात मानना और उसके अनुसार करना यह बापकी इच्छा और रुचि पर निर्भर है।
श्री मुणोत जी ने अभी हमसे शुभ-कामना करने के लिये कहा है। मुणोतजी का कहना उचित है और हम भी इस बात को मानते हैं। किन्तु वैसे भी अपनी
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