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भोजन किया न किया...!
१४१ ने उनका चेहरा चिन्तित और उदास देखा तो पूछ लिया-"क्या बात है ? क्या दुकान पर कोई गड़बड़ हो गई ?"
सेठजी ने उत्तर दिया--"नहीं, गड़बड़ तो कुछ नहीं हुई। बात यह कि आज अपनी दुकान का और अन्य सभी प्रकार की आमदनियों का हिसाब-किताब हुआ है और उससे मालूम हुआ है कि हमारी इक्कीस पीढ़ियाँ अपने धन को बैठे-बैठे खा सकती हैं। किन्तु मैं सोचता हूँ कि यह धन जब इक्कीस पीढ़ियाँ ही खा पाएंगी तो फिर बाईसवीं पीढ़ी क्या करेगी, वह क्या खायेगी ?"
सेठानी ने पति की बात सुनकर मन ही मन अपना माथा ठोक लिया। सेठजी की भावना पर उसे बड़ा आश्चर्य और खेद हुआ। किन्तु वह बड़ी समझदार थी अतः उसने पति को ठिकाने लाने के प्रयत्न में कहा -'सेठजी ! लगता है कि हमारी ग्रह-दशा आजकल ठीक नहीं है अतः अच्छा हो कि हम कुछ दान-पुण्य करें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।"
__ सेठजी ने अन्यमनस्कता की स्थिति में उत्तर दिया- मेरा दिमाग तो कुछ काम नहीं करता, तुम जो ठीक समझो करो, जाओ, और अपने पड़ोस में ही जो ब्राह्मण देवता हैं उन्हें भोजन के लिए बुला लाओ।"
___ सेठजी की बात सुनकर सेठानी ब्राह्मण को बुलाने गई, किन्तु कुछ देर बाद वह अकेली ही लौट आई। यह देखकर सेठ ने पूछा
"क्या हुआ ? ब्राह्मण देवता भोजन करने नहीं आये ?"
"नहीं, उन्होने कहा है कि हम भिक्षु क हैं और हमें आज का भोजन प्राप्त हो चुका है।" _ "तो उन्हें कल के लिए निमन्त्रण दे दिया होता।" सेठ ने पुनः कहा ।
सेठानी बोली-"मैंने ब्राह्मण से कहा था कि आप कल हमारे यहाँ भोजन करने के लिए पधारना किन्तु उन्होंने कहा दिया है-मैं कल की चिन्ता आज नहीं
करता।"
यह बात सुनकर सेठजी दंग रह गये और विस्मय से सेठानी की ओर देखने लगे। मौका ठीक जानकर सेठानी ने सेठ को समझाने के तौर पर कहा-“सेठजी, वह ब्राह्मण तो कल की चिन्ता भी आज नहीं करता पर आप तो बाईसवीं पीढ़ी के लिए भी आज ही चिन्ता कर रहे हैं।"
सेठानी की बात सुनकर सेठजी की अक्ल ठिकाने आ गई और उन्होंने अपनी निरर्थक चिन्ता और तृष्णा के लिये पश्चात्ताप करते हुए सतोषवृत्ति को धारण किया।
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