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________________ १३२ आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग क्षणों की महत्ता ___ इस पंचम काल में तो वैसे भी प्राणियों की औसतन आयु अत्यल्प है पर हम तो इसे भी एक-एक क्षण करके निरर्थक करते चले जा रहे हैं। परिणाम क्या होगा ? जब हम समय की कद्र नहीं करेंगे तो समय कब हमारी परवाह करेगा ? वह तो पानी के स्रोत की तरह निरंतर बहता चला जाएगा। बन्धुओ, एक-एक क्षण का कितना महत्व है इसका आप अन्दाजा नहीं लगा सकते । फिर भी अगर कुछ समझना है तो धन्ना मुनि के जीवन से यह समझा जा सकता है। धन्ना मुनि अतुल सम्पत्ति एवं ऋद्धि-सिद्धि से परिपूर्ण कुल में उत्पन्न हुए थे। किन्तु उस सब को ठोकर मारकर वे साधु बन गये और आत्म-कल्याण में जुट गये । उनका संयमी जीवन केवल नौ मास का रहा, जिसमें वे बेले-बेले के पश्चात् पारणा करते थे और पारणे के दिन आयंबिल में वे जो भी रूखा-सूखा लाते थे उसे भी पानी में भिगो देते और कहा जाता है कि इक्कीस बार पुनः-पुनः धोकर उस अन्न को ग्रहण करते थे। केवल नौ मास की दीक्षावधि में ही उन्होंने ऐसी सराहनीय तपस्या की और मोक्ष में ले जाने वाली 'करणी' कर ली किन्तु आयुष्य-कर्म थोड़ा सा बाकी रह गया था अतः उन्हें सर्वार्थसिद्धि-विमान में जाना पड़ा और उसके पश्चात् एक जन्म लेकर ही वे मोक्ष के अधिकारी बन गए। __ यहां मुझे आपको यह बताना है कि उनकी आयु में कितना समय बाकी था, जिसके कारण उन्हें सर्वार्थसिद्धि में जाकर एक जन्म और लेना पड़ा ? आपको जान: कर आश्चर्य होगा कि केवल सात 'लव' अर्थात् सात क्षण ही उनके आयुष्य-कर्म को और मिल जाते तो वे उसी जन्म में मुक्ति प्राप्त कर लेते किन्तु सात क्षणों की कमी के कारण उन्हें मोक्ष-प्राप्त करने में विलम्ब हुआ। केवल सात क्षण; क्या इस ज्वलंत उदाहरण से भी आपको समय का महत्व नहीं मालूम होता ? धन्ना मुनि के तो सात क्षणों की कमी ही मुक्ति प्राप्त करने में बाधा बनी, किन्तु हमारे तो क्षण ही क्या, मिनिट, घन्टे, प्रहर, दिन, महीने और वर्ष के वर्ष ही प्रमाद और केवल शरीर को सुख पहुंचाने में व्यतीत होते जा रहे हैं। और व्यतीत भी हो रहे हैं तो सार्थक नहीं वरन् पूर्णतया निरर्थक जा रहे हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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