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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग इस प्रकार सोचते-सोचते अन्त में उसे विचार आया कि-'मैं राजा के साथ जाऊंगा तो सम्भव है राजा को किसी प्रकार शिकार करने से बचा भी लू। और अगर भाग्य ने साथ दिया तो हो सकता है राजा का शिकार करना सदा के लिये छूट जाय।'
- इसी प्रकार विचारों के ताने-बाने बुनते हुए वह राजा के साथ चल दिया क्योंकि राजाज्ञा का उल्लंघन करना उचित नहीं था।
राजा और मंत्री दोनों ही घोड़े पर सवार गहन वन में चले जा रहे थे कि उन्हें एक हरिण भागता हुआ दिखाई दिया। हरिण की आदत होती है कि वह भागते-भागते भी पीछे मुड़कर देखता जाता है। वह हरिण भी उसी प्रकार बीचबीच में पीछे मुड़कर देख लेता था।
__ हरिण की यह क्रिया देखकर राजा ने कुतूहलवश मंत्री से पूछ लिया"मंत्रिवर ! हरिण के इस प्रकार मुड़-मुड़कर देखने का क्या अर्थ है ? क्यों देखता है यह इस प्रकार ?"
___मंत्री बड़ा हाजिर जवाब था अतः उसने ठीक मौका देखकर पहले तो कहा"महाराज ! हरिण के इस प्रकार मुड़कर देखने कारण तो मैं जानता हूं किन्तु कैसे बताऊँ ? आप कुपित हो जाएंगे।"
राजा हँस पड़े और बोले-"आप भी क्या बात करते हैं मंत्री जी ? भला ऐसी बातों पर भी कहीं मैं नाराज हो सकता हूँ ? आप निस्संकोच बताइये कि क्या कारण है इसके मुड़-मुड़कर देखने का।" . "तो सुनिये महाराज ! आप क्षत्रिय हैं और यह हरिण भली-भांति जानता है कि क्षत्रिय भागते हुए दुश्मन पर भी गोली नहीं चलाते। इसी बात को ध्यान में रखकर यह भागता जा रहा है और यही सोचता हुआ मुड़कर देख रहा है कि आप सच्चे क्षत्रिय हैं या नहीं ?'
मंत्री की बात सुनकर राजा चुप रह गया । वास्तव में यह बात सच थी कि सच्चा क्षत्रिय पीठ फेरने वाले पर वार नहीं करता । यद्यपि राजा का प्रश्न एवं मंत्री का उत्तर दोनों ही मन बहलाने के लिये थे। किन्तु राजा को बड़ी शर्मिन्दगी महसूस हुई और उसने सोचा
"सच्चे क्षत्रिय तो भाग जाने वाले शत्रु पर भी गोली नहीं चलाते हैं तो फिर इस भोले हरिण ने या वन के अन्य पशु-पक्षियों ने मेरा क्या बिगाड़ा है जो मैं उन्हें अपनी गोली का शिकार बनाऊँ ?"
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