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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग
आयंबिल अथवा एकासन भी कभी नहीं करता तथा सुबह, दोपहर शाम या रात किसी भी समय खाने-पीने में जुटा रहता है । भक्ष्याभक्ष्य का भी ध्यान नहीं रखता तथा मदिरा मांस आदि हिंसाजनित वस्तुओं का निःसंकोच उपयोग करता है । और तो और व्यक्ति रात्रि भोजन का भी त्याग नहीं करता । भगवान के आदेशानुसार अगर मनुष्य केवल रात को खाना छोड़ दे तब भी एक वर्ष में छः महीने की तपस्या उसके पल्ले पड़ जाती है । आप पूछेंगे यह कैसे ? वह इस प्रकार कि चार प्रहर का दिन और चार प्रहर की रात्रि होती है । अतः आत्मोन्नति का इच्छुक व्यक्ति अगर रात में खाने का त्याग कर दे तो रात्रि के चार प्रहर का तप तो उसका सहज ही हो सकता है । एक वर्ष में छः महीने की रात होती है और की तपस्या हो जाती है ।
इसलिये उसकी छ: महीने
लेकिन वह भी तो आज श्रावकों से नहीं बन जल्दी भूख नहीं लगती, शाम से खाया नहीं जाता।' अरे समय पर यानी दस बजे के आस-पास व्यक्ति खाना खा ले तो उसे शाम को भूख क्यों नहीं लगेगी ? लेकिन वह तो दिन को एक बजे या दो बजे तक खाना खाता है, और ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है कि फिर रात तक वह पुनः खायेगा |
पाता । वे कहते हैं - 'हमें भाई ! प्रातःकाल अगर
इसके अलावा चलिये, सदा ही रात्रि भोजन का त्याग न सही, कम से कम चतुर्दशी एवं अष्टमी को रात के खाने का त्याग करना चाहिये । पर वह भी नहीं । पूछने और कहने पर जवाब मिलता है - "महाराज, याद नहीं रहती ।"
सुनकर बड़ा खेद होता है कि आज व्यक्ति को खाना-पीना, घूमना-फिरना, सैर-सपाटे करना और ठीक समय पर धनोपार्जन के कार्य करना. ये सभी कुछ तो याद रहते हैं और इन्हें ठीक समय पर ही नहीं, समय से पहले ही करने को तैयार रहता है । बस केवल सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषध, उपवास अथवा अन्य व्रत नियमों का पालन करना याद नहीं रहता ।
पर बंधुओ याद रखो, इस शरीर के द्वारा चाहे आप व्रत नियम और त्यागतपस्या करो और चाहे यह कुछ भी न करके खूब सावधानीपूर्वक पौष्टिक खुराक दे-देकर पुष्ट करो, यह तो निश्चय ही एक दिन साथ छोड़ देने वाला है | चाहे इन्द्रियों की क्षीणता से, वृद्धावस्था के आ जाने से, सबसे बच गए तो भी काल के आ जाने पड़ेगा ।
रोगों के आक्रमण से और इन
पर तो इसे जीव का साथ छोड़ना ही
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