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________________ आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग पकड़ लिये कि आइन्दा झ ठा अहंकार नहीं करू गी और न ही गर्वोक्ति का प्रदर्शन करूंगी। बंधुओ, आप समझ गए होंगे कि झूठे और अहंकार भरे वचनों का प्रतिदिन प्रयोग करने से ही उक्त बहू को घर में आए हुए मेहमानों के सामने लज्जित होना पड़ा । ऐसा वचनगुप्ति में विवेक न रखने के कारण ही हुआ। इसी प्रकार अनेक प्रकार की हानियाँ वाणी के अविवेक के कारण होती हैं। कभी-कभी तो गालीगलौज, मार-पीट और जान जाने की नौबत भी अविवेकपूर्ण वचनों के कारण आ जाती है। द्रौपदी की जबान से निकल गया था-"अंधों के लड़के अंधे होते हैं ।" बस इस वाक्य के कारण ही महाभारत युद्ध ठन गया और लाखों प्राणियों का संहार हुआ । इसलिये विचारक बार-बार चेतावनी देते हैं कि बोलने में जरा भी चूक मत होने दो । क्योंकि कभी-कभी छोटा सा कटु वाक्य भी महान दुष्परिणाम का कारण बनता है। एक उर्दू के कवि का कथन है फितरत को नापसद है सख्ती जबान में । पैदा हुई ना इसलिये हड्डी जबान में ॥ कहा है कि कुदरत को ही जबान की सख्ती यानी कटुता पसंद नहीं है अतः उसने जबान में हड्डी का निर्माण नहीं किया । उसका मूक संकेत यही है कि जबान स्वयं जैसी कोमल है, उसी प्रकार वह कोमल शब्दों का उच्चारण भी करे। कहा जाता है कि महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस का जब आखिरी वक्त आया तो उनके शिष्यों ने उनसे प्रार्थना की कि आप हमें एक अंतिम सीख और प्रदान करें। इस पर कन्फ्यूशियस ने अपने प्रिय शिष्यों से प्रश्न किया--"मेरे मुह में तुम लोगों को क्या दिखाई देता है ?" शिष्यों में से एक बोला --- "गुरुदेव ! आपके मुह में केवल जबान है, दांत तो सभी गिर चुके हैं।" गुरु बोले- क्या तुम लोग बता सकते हो कि मेरे सारे दाँत क्यों पहले ही गिर चुके जबकि जबान ज्यों की त्यों विद्यमान है।" बेचारे शिष्य एक दूसरे का मुह देखने लगे। किसी को गुरु के प्रश्न का उत्तर नहीं सूझा । यह देखकर कन्फ्यूशियस ने स्वयं ही कहा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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