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जल कमलवत्
भगवान ऋषभदेव की प्रवचन सभा में एक बार उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती पूछा - "भगवन् ! मुझे मोक्ष की प्राप्ति कब होगी ?"
आत्मा की विभिन्न अवस्थाएँ
भगवान ने सहजभाव से उत्तर दिया- "तुम इसी जन्म में मोक्ष प्राप्त - करोगे ।"
भरत जी के प्रश्न और भगवान ऋषभदेव के उत्तर को प्रवचन- स्थल पर बैठे हुए एक स्वर्णकार ने सुना । पर सुनते ही उसने शहर में भगवान की निन्दा करते हुए कहना प्रारम्भ किया -- "भगवान भी कितना पक्षपात करते हैं । उनके बेटे भरत महाराज इतने बड़े सम्राट हैं, ऐश्वर्य में खेलते हैं, पर बेटे हैं इसलिये भगवान उन्हें ही मुक्ति प्रदान करेंगे। ठीक भी है, बाप मुक्ति देने वाले हैं और बेटे लेने वाले ।"
स्वर्णकार की ऐसी बातें नगर में आग की तरह फैल गई । और जनता आपस में कानाफूसी करती हुई जगह-जगह इस बात की चर्चा करने लगी। धीरे-धीरे महाराजा भरत के कानों तक भी यह विषय पहुँचा । भरतजी ने स्वर्णकार को बुलवाया और उसे आदेश दिया कि एक तेल से भरा हुआ कटोरा हाथों में लेकर इस विनीता नगरी के प्रत्येक बाजार और प्रत्येक गली में से गुजरे, किन्तु तेल की बूंद भी जमीन पर गिरने न पाये । अगर एक बूँद भी जमीन पर गिर गई तो नंगी तलवारें लिये हुए साथ चलने वाले सैनिक उसकी गर्दन को तलवार से उड़ा देंगे ।
तत्पश्चात् स्वर्णकार को एक रत्नजटित कटोरा दिया गया तथा तलवारें लिये हुए कई सैनिकों के साथ उसे नगर के समस्त बाजारों और गलियों में ले जाया गया । जब सम्पूर्ण नगर में घुमा-फिराकर सैनिक स्वर्णकार को पुनः महाराज भरत के समक्ष लाये तो भरत जी ने उससे पूछा - "क्यों भाई, तुमने बाजारों में क्या-क्या
देखा ?"
गई । "
" कुछ भी नहीं देखा महाराज ! मेरी दृष्टि एक बार भी किसी ओर नहीं
" वाह ! आज तो शहर के सभी बाजार विशेष रूप से सजाए गए थे और स्थान-स्थान पर अनेक आकर्षक दृश्य दिखाई दे रहे थे, फिर तुमने उन्हें देखा क्यों नहीं ?" भरत जी ने पुनः प्रश्न किया ।
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