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________________ १०६ आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग पूज्यपाद श्री अमीऋषि की महाराज ने ऐसे बहिरात्मा के विषय में कहा है करत जगत धंध अंध के समान सुख, ऐश में मुलायो मन त्रास नहीं काल की । उडी उडी नीव देइ. चुणावे आवास जाली, झरोखा अटारी चित्र शोभा सुरसाल की । मात तात नारी सुत, मोह में बंधाय रह्यो, तृष्णा अधिक चित्त करे धन माल की । अमोरिख कहे घट रोके जब मौत आय, जावे सब छोड़ बांध पोट पाप जाल की । कवि श्री ने बहिरंग जीवात्मा के विषय में बताया है कि ऐसा व्यक्ति अंधे के समान आगे की बात न सोचते हुए दिनरात जगत के धंधों में उलझा रहता है तथा काल का भय न मानते हुए सांसारिक भोग-विलासों में डूबा रहता है। जालीझरोखों सहित बड़ी-बड़ी हवेलियां गहरी-गहरी नीवें खुदवाकर बनवाता है, जैसे वह सदा ही उनमें रहा करेगा। इतना ही नहीं वह अपने माता, पिता, पुत्र एवं पत्नी आदि के ममत्व में प्रस्त रहकर बेईमानी एवं अनीति से धन इकट्ठा करता है तथा अहनिशि तृष्णा में पड़ा रहकर धनमाल की बढ़ोतरी एवं सुरक्षा में लगा रहता है। किन्तु इस प्रकार सम्पूर्ण जीवन हाय-हाय में बिताकर भी वह कभी चैन नहीं पाता और काल का बुलावा आते ही केवल अपने पापों की पोटली अपने हाथ लेकर अकेला ही यहां से चल देता है। आशय यही है कि बहिरात्मा के अन्तर में भोगों की तृष्णा रूपी आग सदा धधकती रहती है और वह अप्रिय के संयोग से और प्रिय के वियोग से व्याकुल तथा अशांत बना रहता है। उर्दू के एक कवि ने कहा भी है जब तक इसी सागर से तू मखमूर है । जौक से जामे बका के दूर है ॥ अर्थात् जब तक तू सांसारिक पदार्थों के मद में उन्मत्त है, तब तक परम शान्ति के आनन्द दूर ही रहेगा। पर बंधुओ, यद्यपि बहिरंग आत्मा कषाय एवं राग द्वेषादि के कारण मलिन होती है, किन्तु ऐसी बात भी नहीं है कि वह कभी शुद्ध नहीं हो ही सकती। सदगुरुओं का उपदेश मिलने पर तथा शास्त्रों के द्वारा भगवान के आदेशों पर विश्वास Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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