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________________ ११ आत्मा की विभिन्न अवस्थाएँ धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओ एवं बहनो! । आज हम आत्मा की विभिन्न अवस्थाओं पर विचार करेंगे तथा देखेंगे कि आत्मा किस प्रकार परमात्मा बनती है। विश्व के अनेक ईश्वरवादी दर्शन यह कहते हैं कि आत्मा और परमात्मा मौलिक रूप में पृथक्-पृथक् हैं। परमात्मा अनादिकाल से परमात्मा है, वह कभी दोषयुक्त था ही नहीं अतः उसे परमात्मा बनने के लिये कुछ भी साधना नहीं करनी पड़ी। वह परमात्मा एक ही है क्योंकि कोई भी आत्मा कितनी भी साधना करे वह परमात्मपद को प्राप्त नहीं करती। परमात्मा तो अद्वितीय और नित्यमुक्त है तथा सृष्टि का विधाता है। उनका कथन है कि आत्मा साधना करने पर मुक्तात्मा तो बन सकती है किन्तु परमात्मा कभी नहीं बनती। यह तो हुआ अन्य अनेक दर्शनों का मत, किन्तु हमारे जैनदर्शन की मान्यता ऐसी नहीं है । यह परमात्मा के अनादित्व को नहीं मानता वरन कहता है कि कोई भी आत्मा बिना प्रयास और साधना के विशुद्ध नहीं हो सकती और जब तक वह शुद्ध नहीं होती परमात्म-दशा में नहीं पहुँच सकती। आत्मा और परमात्मा में मौलिक भेद मानना ठीक नहीं है क्योंकि पदार्थों में भेद उनके गुणों की विभिन्नता से माना जाता है और इस आधार पर विचार किया जाय तो प्रतीत होता है कि ईश्वर और आत्मा के गुण सर्वथा भिन्न नहीं हैं। जिस प्रकार ईश्वर सच्चिदानन्द स्वरूपवाला है उसी प्रकार आत्मा भी है। ईश्वर में पाये जाने वाले सत्, चित् और आनन्द ये तीनों गुण अगर आत्मा में न होते तो दोनों में भेद माना जा सकता था किन्तु आत्मा में भी ये तीनों विद्यमान हैं अतः आत्मा और परमात्मा को अथवा १०४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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