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चिन्तामणि रत्न-चरित्र मर्यादाओं का पालन करता हैं तो वह भी आचरणशील माना जाता है। दोनों ही अपने-अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं । यद्यपि आत्म-मुक्ति पूर्ण चरित्र का पालन करने पर ही हो सकती है किन्तु गृहस्थ भी सदाचार का पालन करके सत्पथगामी कहलाता है।
इसीलिये प्रत्येक व्यक्ति को अपने चरित्र के प्रतिपल सजग रहना चाहिये तथा चरित्र-निर्माण को जीवन का लक्ष्य बनाकर आत्म-कल्याण के पथ पर अग्रसर होना चाहिये । तभी उसे इहलोक और परलोक में भी सुख की प्राप्ति हो सकेगी।
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