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चिन्तामणि रत्न-चरित्र
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. ऐसे व्यक्तियों के लिये एक स्थान पर महात्मा गांधी ने कहा हैं
"सच्चरित्रता के अभाव में केवल बौद्धिक ज्ञान सुगन्धित शव के समान है।"
किसी कवि ने कहा हैमतिमान् हुए, धृतिमान हुए, गुणवान् हुए बहु खा गुरु लातें, इतिहास भगोल खगोल पढ़े नित गान रसायन में कटौं रातें। रंस पिंगल भूषण भावभरी गुण सीख गुणी कविता करी बातें, यदि मित्र, चरित्र न चारु हुआ धिक्कार है सब चतुराई की बातें ॥
बंधुओ ! आप समझ गए होंगे कि सदाचार के अभाव में जिस प्रकार धनसम्पत्ति का कोई मूल्य नहीं है, उसी प्रकार ज्ञान और विज्ञान का भी कोई महत्व नहीं है। । यद्यपि विश्व के सभी सम्प्रदाय, पंथ, मत और धर्म वस्तु के स्वरूप को ठीक-ठीक समझने के लिये ज्ञान की अनिवार्य आवश्यकता मानते हैं किन्तु उस ज्ञान का फल चरित्र है, और अगर ज्ञान से चरित्र की प्राप्ति न हो तो वह सर्वथा निरर्थक है । संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं वे अपने उत्तम चरित्र के द्वारा ही अपनी आत्मा को उन्नत बना सके हैं तथा कर्म-बन्धनों से मुक्त होकर संसार से छुटकारा प्राप्त कर सके हैं । इसीलिये कवि ने कहा है कि कोई व्यक्ति इतिहास. भगोल, खगोल, न्याय आदि सभी कुछ रात-रात भर जागकर पढ़ ले और उनमें पारंगत होकर बृहस्पति का अवतार बन जाए, रस, अलंकार एवं छन्दों का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करके बड़ी सुन्दर और भावभरी कविताएँ भी लिखें, किन्तु अगर उसका चरित्र दृढ़ और उत्तम नहीं है तो उसका सम्पूर्ण ज्ञान और चतुराई व्यर्थ है।
जिस प्रकार औषधि शरीर की व्याधियों को नष्ट करती है, उसी प्रकार सदाचार आत्मा के रोगों को नष्ट करके उसे शुद्ध बनाता है। इसीलिये हमारे शास्त्रों में आचरण अथवा चरित्र की महिमा मुक्तकंठ से गाई गई है।
'सूयगडांग सूत्र' में कहा गया है
अविसु पुरा वि भिक्खवो, आएसा वि भवंति सुव्वया । एयाइ गुणाई आहुते, कासवस्स अणुधम्मचारिणो॥
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