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सुदूर अतीत में प्रवचन संकलन की ओर किसी का भी ध्यान नहीं जैसा ही रहा । अब इस युग में इस ओर जनता का ध्यान पुनः केन्द्रित हुआ है ।
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जहाँ पर मुनिजन नहीं पहुँच पाते ऐसे क्ष ेत्रों में मुनिराजों के संकलित प्रवचन पहुंच सकते हैं। सिर्फ यही एक साधन है कि वहां के लोग जिसके द्वारा अपनी प्रवचन श्रवण-पिपासा को प्रशान्त कर सकते हैं ।
जहाँ तक मेरी जानकारी है, स्थानकवासी समाज में प्रवचन संकलन की प्रथा के पुनरुत्थान का श्रीगणेश स्वर्गीय आचार्य श्री जवाहरलाल जी महाराज के भक्तजनों की ओर से किया गया । उसी का यह सुपरिणाम रहा कि आचार्य श्री जी जैसे प्रभावशाली पुरुषों के प्रतिभा-पूर्ण प्रवचन जन-जन के करकमलों में पहुँच सके ।
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प्रवचन - संकलन की प्रणाली अब काफी विकसित हुई है । 'आनन्द-प्रवचन' भी उस लड़ी की एक कड़ी है ।
'आनन्द प्रवचन' में महामहिम आचार्य - सम्राट श्री आनन्द ऋषिजी महाराज के प्रवचन संकलित किए गए हैं ।
आचार्य श्री जी स्वयं एक सुमधुर संतजन हैं। उनके प्रवचन भी उतने ही मधुरतम व रोचक हैं - यह एक तथ्य उक्ति है ।
आचार्य श्री जी संस्कृत, प्राकृत व अन्य भाषाओं के विशिष्ट विज्ञाता हैं । अतः उनके प्रवचनों में यत्रतत्र श्लोक, गाथाएं व अन्य कविताएँ भी बिखरी पड़ी हैं ।
'आनन्द- प्रवचन' की सम्पादिका हैं श्रीमती कमला जैन 'जीजी' एम० ए० । आनन्द-प्रवचन को पहले के चार भागों का सम्पादन भी जीजी ने ही किया है । 'जीजी' एक कुशल सम्पादिका है । जैन समाज के सुप्रसिद्ध पंडित श्री शोभाचन्द्र जी भारिल्ल की सुपुत्री होने का सोभाग्य 'जीजी' को मिला है । विद्वान पिता की विदुषी पुत्री - यह एक मंगलमय अभिसंबन्ध है ।
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स्वयं पण्डित जी ने अनेक ग्रन्थों का सम्पादन किया है । पंडित जी से ही 'जीजी' को पैत्रिक संपत्ति के रूप में यह सम्पादन कला मिली है। 'जीजी' ने इससे पूर्व भी 'आम्रमंजरी', 'अन्तर की ओर', 'अर्चना और आलोक' आदि अनेक पुस्तकों का प्रतिभ सम्पादन किया है । आनन्द प्रवचन में भी 'जीजी' की सम्पादन - प्रतिभा पर्वतोमुखी मुखरित हुई है।
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