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और भी एक बात है । परम- विदुषी सतीजी श्री उमरावकुंवर जी 'अर्चना' का पथ-प्रदर्शन 'जीजी' को समय-समय पर मिलता रहता है । जीजी के लिए यह स्वर्ण में सौरभ जैसी बात है । प्रस्तुत सम्पादन में भी 'जीजी' को सतीजी का पथप्रदर्शन सुचारु रूप से मिला है ।
'जीजी' का सम्पादन और भी अधिक से अधिक लोकप्रिय बने और जन-जन के लिये सुपाठ्य सामग्री बने-बस, इसी शुभाशा के साथ विराम'''
मधुकर मुनि
जैन स्थानक
पाली २८।२।७४
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