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चिन्तामणि रत्न-चरित्र
धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओ एवं बहनो !
आज हमें यह देखना है कि चरित्र का निर्माण किस प्रकार होता है ? मानव के जीवन को उसका चरित्र ही सुन्दर या असुन्दर बनाता है। अगर उसका चरित्र उत्तम और सद्गुणों से युक्त है तो वह सच्चरित्र कहलाएगा तथा अवगुणों से पूर्ण चरित्र के होने पर दुश्चरित्र कहलाने लगेगा। संक्षेप में चरित्र ही मनुष्य को सज्जन अथवा दुर्जन बनाता है।
अगर हम विश्व के महापुरुषों की जीवनियाँ उठाकर देखें तो सहज ही ज्ञात हो जाता है कि उनकी महानता की आधारशिला उनका चरित्र ही रहा है। भले ही उनका पार्थिव शरीर इस संसार में नहीं रहा किन्तु चारित्रिक प्रतिभा सदैव के लिये लोगों का मार्ग-दर्शक बन गई है। चरित्रवान् पुरुष के जीवन में ऐसी आकर्षण शक्ति होती है जो कि अन्य अनेकानेक व्यक्तियों के जीवन की उलटी धारा को भी सही दिशा में प्रवाहित कर देती है। अतः कोई भी व्यक्ति अगर अपने जीवन को उन्नत बनाता है और अपनी आत्मा को शुद्धि की ओर ले जाना चाहता है तो उसे प्रतिपल, और प्रतिकदम पर अपने आचरण का ध्यान रखना पड़ेगा। ऐसा करने पर ही वह स्वयं मानव-जन्म के सर्वोच्च लक्ष्य की ओर बढ़ेगा तथा अन्य प्राणियों को भी कुपथ से सत्पथ पर ला सकेगा।
‘एक पाश्चात्य दार्शनिक 'बर्टल' ने कहा भी है:'Character is a diamond that scratches every other stones.' -चरित्र एक ऐसा हीरा है जो हर किसी पत्थर को घिस सकता है ।
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