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चिन्तन का महत्त्व
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प्रकार पहले की गलतियाँ और भूलें जब तक स्मरण की जाती हैं और उन पर चिन्तन किया जाता है तब तक वे चित्त को बोझिल और अशुद्ध बनाये रखती हैं अतः प्रत्येक मुमुक्षु को चाहिये कि उन सबको अपने विश्वासी व्यक्ति अथवा गुरु के समक्ष सरलता और सत्यतापूर्वक निकाल देना चाहिये । ऐसा करने पर ही चित्त शुद्ध हो सकेगा तथा उन पर पुनः पुन चिन्तन करके समय को निरर्थक करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
चिन्तन का एक कारण भविष्य के विषय में सोचना भी है। लोग दिन-रात अपने भविष्य के सपने संजोया करते हैं। न जाने कितने पाप करके धन इकट्ठा करते हैं कि भविष्य में उससे सुख हासिल हो। धन किस प्रकार अधिक से अधिक इकट्ठा हो उसके विषय में ही वे अहर्निश सोचते हैं, चिन्तन करते हैं। इसके अलावा अपने पुत्र-पौत्रों के लिये भी अठारहों पापों का सेवन करते हुए अनेकानेक कर्मों का बंधन तो करते ही हैं साथ ही भविष्य के सुनहरे सपने देखने में भी अपने जीवन का बहुमूल्य समय निरर्थक गँवा देते हैं ।
_ऐसे व्यक्ति यह भूल जाते हैं कि जीवन अमर नहीं है और कभी भी समाप्त हो सकता है। बैठ-बैठे हास-परिहास में निमग्न व्यक्ति हृदय का स्पन्दन रुकते ही क्षण मात्र में लुढ़क जाता है । आज तो वह नाना मनोरथों का सेवन करता है, अगणित व्यवस्थाओं के विषय में चिन्तन करता है कि कल यह करेंगे, महीने भर बाद वह और साल भर बाद कुछ और, किन्तु पल पर में ही वह समस्त संकल्पों से निवृत्त होकर चिर निद्रा में सो जाता है । कहा भी है
- आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं । ...
सामान सौ बरस के पल की खबर नहीं ।। अभिप्राय यही है कि मनुष्य भविष्य के लिये कल्पनायें करता है, कामनाओं के अगणित महल बनाता है और मर-मर कर धन इकट्ठा करता है, किन्तु उस धन को भोगने से पूर्व ही और समस्त कल्पनाओं के सत्य होने से पहले ही इस लोक से प्रयाण कर जाता है। जीवन का किंचित् मात्र भी भरोसा नहीं किया जा सकता । काल का आगमन होने पर संसार की कोई भी शक्ति और कोई भी डॉक्टर-वैद्य मनुष्य को उसके चंगुल से नहीं छुड़ा सकता ।
इसीलिये भविष्य के लिये चिन्तन करना और उसके लिये विभिन्न पदार्थों का संचय करना वृथा है। ऐसा करना समय को व्यर्थ बरबाद करना है। आशा है अब आप समझ गये होंगे कि भूतकाल के लिये पश्चात्ताप करना और भविष्य के लिये आशायें बाँधना, दोनों ही मानव के लिये समय का दुरुपयोग करना है।
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