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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग
के कारण पुनः वापिस तो आता नहीं उलटे उसके लिये पश्चात्ताप करने, चिन्ता करने और कुढ़ने से शरीर क्षीण होता है । भूतकाल से केवल यही शिक्षा ली जा सकती है कि की हुई गलतियों और भूलों को जीवन में पुनः न होने दिया जाय । यह सकल्प ही मनुष्य को अपने जीवन में सफल बना सकता है । एक कहावत भी हैगई सो गई अब राख रही को ।'
आशय इसका यही लिया जा सकता है कि जितनी जिन्दगी व्यर्थ चली गई सो तो चली ही गई । उसके लिये पश्चात्ताप मत करो, वरन जो बची हुई है उसे सार्थक बनाने का प्रयत्न करो ।
जो व्यक्ति इस बात की गांठ बाँध लेता है वह निश्चय ही अपने वर्तमान और भविष्य को सुधार सकता है। प्रायः हम देखते हैं कि अनेक व्यक्ति अपना शैशव तो खेल- खूद में समाप्त करते ही हैं, युवावस्था को भी विषय-भोगों में बिताकर फिर जीवन के अन्तिम समय या कि वृद्धावस्था में घोर पश्चात्ताप करते हैं । वे सोचते हैं:
बालवय खेल मांही खोय के जवान भयो,
काम, क्रोध छायो घट, भूल्यो जिनराज ने । वृद्धवय आइ तब हुवो है निर्बलतन,
घेर लियो सांस खांस
छोड़ी सब लाज ने ॥
अर्थात् — बाल्यावस्था तो मैंने खेल-कूद कर गँवादी और जवानी में विषयभोग तथा राग-द्व ेष के वश में रहकर भगवान को भुला रहा । और अब तो ऐसी वृद्धावस्था आ गई है कि शरीर पूर्णतया क्षीण हो गया है और श्वास, खाँसी आदि बीमारियों ने इसे घेर लिया है । अतः अब मैं क्या करूं । मेरा जीवन ही निरर्थक
चला गया ।
इस प्रकार पश्चात्ताप करने वाले व्यक्तियों के लिये ही कहा जाता है कि जो बीत गई वह तो गई ही पर अब जितनी बची है उसी को सार्थक करने का प्रयत्न करो । बीते हुए वक्त के लिये दुःख, चिन्ता या पश्चाताप करके जो बचा हुआ जीवन है उसे भी निरर्थक मत गँवाओ ।
कहने का आशय यही है कि भूतकालीन घटनाओं के और बीते हुए जीवन के विषय में चिन्तन करके अपने समय को बरबाद नहीं करना चाहिये । भूतकाल के विषय में चिन्तन करना, अपने मन में कूड़े-करकट को जमा रखने के समान है । जमा हुआ कचरा जिस प्रकार घर को श्रीहीन और दुर्गन्धमय बनाए रखता है, उसी
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