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________________ ९ चिन्तन का महत्त्व धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओ एवं बहनो ! आज हमें यह देखना है कि चिन्तन का जीवन पर कैसा प्रभाव पड़ता है । किस प्रकार के चिन्तन से समय का सदुपयोग होता है और किस प्रकार के चिन्तन से समय का दुरुपयोग ? आप जानते ही हैं कि मनुष्य का मस्तिष्क प्रतिपल वह कुछ न कुछ विचार करता रहता है करता है । किन्तु कैसे विचारों का जीवन पर सुप्रभाव का कुप्रभाव, यही विचारणीय है ! चिन्तन के कारण कभी भी निष्क्रिय नहीं रहता । ओर कोई न कोई मंसूबा बाँधा पड़ता है तथा कैसे विचारों मनुष्य के जीवन का अधिकांश समय चिन्तन में जाता है । हम यह भी कह सकते हैं कि वह अपने जीवन का संभवतः नब्बे प्रतिशत समय चिन्तन में गुजारता है और दस प्रतिशत कर्म करने में । वैसे तो कर्म करते समय भी से रहित नहीं होता । चिन्तन के मुख्य तीन कारण कहे जा भूतकालीन घटनाओं के विषय में चिन्तन करना दूसरे वर्तमान संकल्प-विकल्प करना, तीसरे भविष्य की कल्पनाओं के ताने बाने बुनना । Jain Education International इन तीनों में से पहला चिन्तन जो भूतकाल को लेकर मनुष्य करता रहता है, वह सम्पूर्ण समय उसका व्यर्थ चला जाता है । क्योंकि बीती हुई बातों पर चिन्तन करना या विगत भूलों के लिये पश्चात्ताप करते रहना समय का दुरुपयोग करना तो है साथ ही वर्तमान और भविष्य के लिये हानिकारक भी है। बीता हुआ बीत चुकने ८५ उसका चित्त चिन्तन सकते हैं - प्रथम तो काल के विषय में For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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