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सरलता के बहुमूल्य सूत्र संतोष का अनुभव होता है। जिस प्रकार एक व्यक्ति को अपने पूर्वजों के धन का उपभोग करने की अपेक्षा स्वयं अपने पुरुषार्थ और श्रम से उपार्जित धन का भोग करने में आनन्द और गौरव का अनुभव होता है।
___ इसीलिये बुद्धिमान व्यक्ति कभी देव के या औरों के भरोसे पर नहीं रहता तथा कार्य सम्पन्न न होने पर भी भाग्य को दोष देता हुआ कातर नहीं होता। भाग्य के भरोसे पर बैठे रहने वालों को तथा अन्य व्यक्तियों का सहारा ताकने वाले व्यक्तियों को सदा असफलता की प्राप्ति होती है और समम-समय पर रोना पड़ता है अतः ऐसे व्यक्तियों के लिये किसी कवि ने कहा है
हिम्मत न वीर खो, दिलगीर तू न हो, तदबीर भी तो कर कुछ तकदीर को न रो। गैरों को क्या तकता है, क्या कर नही सकता है,
तू शक्ति-पुंज होकर मत दीन मित्र हो । कवि का कथन है-'मित्र ! तू हिम्मत खोकर दिलगीर मत बन तथा तक दीर को रोने की बजाय कुछ तदबीर कर ।
__ भला तू परायों के भरोसे पर क्यों रहता है ? तेरी आत्मा में तो शक्ति का असीम भंडार निहित है अतः उसे पहचान और दीन-हीन बनकर किसी से सहायता को याचना मत कर । तू क्या नहीं कर सकता ? सभी कुछ कर सकता है ।
___ कवि का आशय यही है कि प्रत्येक प्राणी की आत्मा में अनंत शक्ति छिपी हुई है और सांसारिक सफलता की तो बात ही क्या है, वह चाहे तो अपनी आत्मशक्ति के बल पर सम्पूर्ण कर्मों का नाश करके अपनी आत्मा को परमात्मा भी बना सकता है।
स्वावलम्बन मनुष्य के मन में दृढ़ संकल्प पैदा करता है। इसका कारण यही है कि औरों के द्वारा प्राप्त सहायता तो मिले या न मिले व्यक्ति को अधिक खुशी या अधिक दुःख नहीं होता। किन्तु अपने श्रम का फल अगर उसे न मिले तो वह अधिक संतप्त होता है तथा दुगुने उत्साह से उसे प्राप्त करने में जुट जाता है ।
भगवान बुद्ध के विषय में एक लघुकथा बर्मी साहित्य में प्रसिद्ध है कि एक बार वे बोधि की खोज में भटकते-भटकते उसे प्राप्त न कर पाने के कारण अत्यन्त निराश हो गये । गहरी निराशा के परिणाम स्वरूप उन्होंने कपिलवस्तु के राजमहल में पुनः लौटने का निश्चय कर लिया।
लौटते हुए मार्ग में एक झील आई और वे कुछ काल वहाँ विश्राम करने के
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