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५६ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
प्राणी के स्वयं नष्ट होने से यहाँ यह अभिप्राय नहीं है कि उसका शरीर नष्ट हो जाता है अथवा वह मर जाता है। अपितु क्रोध से उत्पन्न मूढ़ता के कारण क्रमशः शक्ति एवं बुद्धि का नाश हो जाने के कारण उसमें हिताहित का ज्ञान नहीं रहता, विवेक समाप्त हो जाता है और इस सबका परिणाम यही होता है कि व्यक्ति अज्ञान के अन्धकार में भटककर आत्म-मुक्ति के मार्ग को नहीं खोज पाता। एक उदाहरण से भी स्पष्ट होता है कि क्रोध किस प्रकार साधक के मार्ग में बाधक बनता है। आत्म-शुद्धि
एक वैष्णव सन्त के पास एक साधक आया और बोला- "गुरुदेव ! मुझे आत्म-साक्षात्कार का कोई उपाय बताइये।"
सन्त ने कहा-"वत्स ! तुम एक वर्ष तक अमुक मन्त्र का जाप एकान्त में पूर्ण मौन रहकर करना तथा जप करते हुये जब वर्ष पूरा हो जाय उस दिन स्नान करके मेरे पास आना। तभी मैं तुम्हें आत्म-साक्षात्कार का उपाय बता सर्केगा।" ___ साधक सन्त की आज्ञानुसार किसी एकान्त स्थान में चला गया और एक वर्ष तक मौन रहकर उनके बताये हुये मन्त्र का जप करता रहा । समय पूरा होने पर वह सन्त के आश्रम की ओर चल दिया। . इधर जब सन्त को साधक के आने का समाचार मिला तो उसने आश्रम में बुहारी लगाने वाली हरिजन स्त्री से कह दिया कि जब साधक गंगा स्नान करके यहाँ आये तो उसके शरीर पर अपनी झाडू से थोड़ा-सा कचरा डाल देना।
भंगिन ने वैसा ही किया अर्थात् जब साधक आश्रम के मुख्य द्वार से प्रविष्ट होने लगा, उसने झाडू से कुछ कचरा साधक के शरीर पर गिरा दिया।
यह देखते ही साधक आग-बबूला हो गया और मारे क्रोध के उस स्त्री को मारने के लिये दौड़ा। स्त्री किसी तरह जान बचाकर भाग गई और साधक भी उसे न पा सकने के कारण पुनः नदी पर स्नान करके आश्रम में आया ।
सन्त के समक्ष आकर उसने कहा- ' गुरुदेव ! मैं एक वर्ष तक आपके बताये हुये मन्त्र का जाप करता रहा हूँ । अब आप मुझे आत्म-साक्षात्कार का उपाय बताइये।" ___सन्त बोले-"भाई ! अभी तो तुम सर्प के समान क्रोधित होते हो। फिर से एकान्त में जाकर मौन-भाव से उसी मन्त्र का जप करो और तब आत्मसाक्षात्कार का उपाय जानने के लिये आना।"
साधक को यह सुनकर बड़ा बुरा लगा किन्तु उसे सन्त की बात पर विश्वास था और उसे आत्म-साक्षात्कार करने की लगन थी अतः चुपचाप चल दिया और पुनः जप करने लगा।
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