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४८ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग नहीं है, जिसे इच्छा करते ही साध लिया जाय । उसके लिए बड़ा परिश्रम बड़ी सावधानी और भारी त्याग की आवश्यकता रहती है । आहार के कुछ भाग का त्याग करना अर्थात् ऊनोदरी करना भी उसी का एक अंग है। अगर मनुष्य भोजन के प्रति अपनी गृद्धता तथा गहरी अभिरुचि को कम करे तो वह ज्ञान हासिल करने में कुछ कदम आगे बढ़ सकता है। क्योंकि अधिक खाने से निद्रा अधिक आती है तथा निद्रा की अधिकता के कारण जैसा कि मैंने कल बताया था, जीवन का बहुत-सा अमूल्य समय व्यर्थ चला जाता है।
आशय मेरा यही है कि मनुष्य अगर केवल शरीर टिकाने का उद्देश्य रखते हुए कम खाए या शुद्ध और निरासक्त भावनाओं के साथ ऊनोदरी तप करे तो अप्रत्यक्ष में तप के उत्तम प्रभाव से तथा प्रत्यक्ष में अधिक खाने से प्रमाद और निद्रा की जो वृद्धि होती है उसकी कमी से अपनी बुद्धि को निर्मल, चित्त को प्रसन्न तथा-शरीर को स्फूर्तिमय रख सकेगा तथा ज्ञानाभ्यास में प्रगति कर सकेगा । खाद्य-वस्तुओं की ओर से उसकी रुचि हट जाएगी तथा ज्ञानार्जन की ओर अभिरुचि बढ़ेगी। सुख प्राप्ति का रहस्य . हकीम लुकमान से किसी ने पूछा- "हकीमजी ! हमें आप एसे गुर बताइये कि जिनकी सहायता से हम सदा सुखी रह सकें । क्या आपकी हकीमी में ऐसे नुस्के नहीं हैं ?" ___लुकमान ने चट से उत्तर दिया-"हैं क्यों नहीं ? अभी बता देता हूँ। देखो ! अगर तुम्हें सदा सुखी रहना है तो केवल तीन बातों का पालन करोपहली-'कम खाओ' । दूसरी—'गम खाओ' और तीसरी है- नम जाओ।"
हकीम लुकमान की तीनों बातें बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं। पहली बात उन्होंने कही-कम खाओ। ऐसा क्यों ? इसलिये कि मनुष्य अगर कम खाएगा तो वह अनेक बीमारियों से बचा रहेगा। अधिक खाने से अजीर्ण होता है और अजीर्ण से कई बीमारियाँ शरीर में उत्पन्न हो जाती हैं। इसके विपरीत अगर खुराक से कम खाया जाय तो कई बीमारियां बिना इलाज किये भी मिट जाती हैं। ___ आज के युग में तो कदम-कदम पर अस्पताल हैं, हजारों डॉक्टर हैं और नाना प्रकार की दवाइयां गोलियाँ और इन्जेक्शन हैं जिन्हें लेते-लेते मनुष्य शारीरिक दृष्टि से तो परेशान होता ही है, धन की दृष्टि से भी कभी-कभी तो दिवालिया हो जाता है। किन्तु प्राचीनकाल में जबकि डॉक्टर नहीं के बराबर ही होते थे, वैद्य ही लोगों की बीमारियों का इलाज करते थे और उनका सर्वोतम नुस्खा होता था, बीमार को लंघन करवाना । लंघन करवाने का र्थअ
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