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________________ जीवन को नियन्त्रण में रखो ३३१ गया। तब एक दिन उसकी सेठानी ने सलाह दी कि तुम अपने दो-चार यज्ञों का फल राजा को देकर उनसे धन ले आओ ताकि हमारा जीवन-यापन हो सके । सेठ राजी हो गया। रवाना होते समय सेठानी ने सेट को राह में खाने के लिए कुछ रोटियाँ बनाकर रख दीं। सेठ चलते-चलते एक वन में पहुंचा और भूख लग जाने के कारण एक पेड के नीचे रोटियाँ खाने बैठा। किन्तु ज्योंही वह रोटी में से ग्रास तोड़ने बैठा उसने देखा कि पेड़ की कोटर में एक कुतिया ब्याई हुई मरणासन्न अवस्था में पड़ी है । कई दिनों से तेज वर्षा होने के कारण वह खाने की तलाश में जा नहीं सकी थी। __ सेठ ने जब यह देखा तो अपनी समस्त रोटियाँ उस कुतियाँ को खिला दी तथा आप भूखा-प्यासा राजा के समक्ष पहँचा राजा ने सम्मान से सेठ को बिठाया और वहां आने का कारण पूछा। सेठजी ने अपनी सारी हालत राजा को बता दी और अपने आने का कारण भी बताया कि वह उनके पास कुछ यज्ञों का फल बेचने आया है । राजा के दरबार में एक महा विद्वान ज्योतिषी था, अतः राजा ने उससे पूछा - 'इन सेठजी के कोन से फल सर्वोत्तम है ?" __ ज्योतिषी ने सोच विचार कर कहा- "महाराज ! इन्होंने जितने भी यज्ञ किये हैं उन सब के फलों में सर्वाधिक उत्तम फल इनके उस परोपकार का है जो कि अपनी समस्त रोटियां राह में कुतिया को खिलाकर किया है । आप उस फल को खरीद लीजिये।" राजा ने सेठजी से इस विषय में पूछा। किन्तु सेठजी अपने उस एकमात्र परोपकार के पुण्य-फल को देने के लिये तैयार नहीं हुए और वैसे ही बिना कुछ लिये लौटने को तत्पर हो गए। किन्त राजा भी बड़े उदार थे । अतः उन्होंने सेठ के यज्ञों का या उनके परोपकार का, किसी का भी फल न खरीदते हुए उन्हें विपुल धन देकर ससम्म न विदा किया। सारांश यही है कि संसार में उदारता के समान और कोई गुण नहीं है तथा जो उदार होता है वह अपने धन को या जो कुछ भी आपका अपना कहलाता है उसे तृण के समान समझता है । श्लोक में दूसरी बात कही गई है- "शूरस्य मरणं तृगम् ।" यानी शूरवीर के लिये मरना तिनके के समान है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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