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________________ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग देवी कमलावती का कथन है - हे आर्य ! मैं तो संयम ग्रहण करना चाहती हो हूँ पर साथ ही यह भी चाहती हैं कि ये कम-भोग आदि जो नाना प्रकार से सुरक्षा करने पर भी अस्थिर हैं, पर हमारे हस्तगत हैं और जिसमें हम आसक्त हैं इन सब को जिस प्रकार मगपुरोहित छोड़कर चले गए हैं, इसी प्रकार हम दोनों भी इन का परित्याग करके संयम मार्ग पर चले । रानी की शुद्ध व आंतरिक भावना में बड़ी शक्ति थी इसलिये उसने अनेक उहाहरण देते हुए राजा को वैराग्य की ओर प्रवृत्त कर लिया। परिणाम स्वरूप राजा इषुकार और रानी कमलावतो दोनों ने ही संयम ग्रहण करके अपनी आत्मा का उद्धार किया। कहने का अभिप्राय यही है कि व्रतों को अंगीकार करना तथा जीवन में त्यागवृत्ति को अपनाना बड़ा कठिन है। ऐसा वे ही महापुरुष कर सकते हैं जो देवी शक्ति से अलकृत होते हैं। जिनके हृदय में वैर, विरोध, राग और द्वेष को स्थान नहीं होता जो कर्तव्य, अकर्तव्य, धर्म, अधर्म, न्याय और अन्याय का विचार करते हैं और जो सम्पूर्ण जगत से निस्पृही बनकर रहते हैं । संस्कृत में एक श्लोक है उदारस्य तृणं वित्तं, शूरस्य मरणं तृणम् । विरक्त य तृणं भार्या, निस्पृहस्य तृणं जगत् ।। जो व्यक्ति उदार होता है उसके लिए धन तिनके के समान होता है। उनकी दृष्टि में मिट्टी और सोना बराबर होता है। ऐसे उदार व्यक्ति बिरले ही होते हैं । पर पृथ्वी किसी भी काल में ऐसे महापुरुषों से शून्य नहीं रहती। अ.ने बम्बई चातुर्मास के समय मैंने सुना था कि एक पारसी बन्धु ने एक ही वक्त में पैतीस लाख रुपये दान में दे दिये थे। परोपकारी व्यक्ति तो अपना सर्वस्व भी दान में देने से नहीं हि वकिचाते । इसलिए कहा गया है परोपकारः कर्तव्यः प्राणरपि धनरपि । परोपकारजं पुण्यं न स्यात् ऋतु शतैरपि ।। -धन और प्राण सभी से परोपकार करना चाहिए; क्योंकि परोपकार के पुण्य के बराबर सौ यज्ञों का भी पुण्य नहीं होता। सर्वोत्तम फल एक सेठ बड़ा धर्मात्मा था। उसने अनेक यज्ञ करवाए और अपना करोड़ों का धन उनमें खर्च कर दिया। परिणाम यह हुआ कि वह स्वयं निर्धन हो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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