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आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
अटूट आस्था ___आत्मा को संसार मुक्त करना कोई सरल कार्य नहीं है। इसे सफल बनाने के लिये अन्तःकरण में अटूट श्रद्धा सम्यक् दर्शन होना चाहिए । दर्शन शब्द यहाँ श्रद्धा-वाचक है, वैसे इसके कई अन्य अर्थ भी होते हैं। ___दर्शन यानी देखना, दशन यानी नमस्कार करना तथा दर्शन यानी सैद्धान्तिक विचार, 'यथा--न्यायदर्शन, पातञ्जलदर्शन, योगदर्शन आदि-आदि । किन्तु यहाँ हम दर्शन का अर्थ श्रद्धा से ही ले रहे हैं।
सम्यकत्व से सड़सठ बोल जो बताए गए हैं, उनमें पहला बोल हैश्रद्धान चार ।' ये चार श्रद्धान क्या हैं ? अब हमें यह जानना है । विचार पूर्वक देखा जाय तो इनमें दो प्रकार की दवाएँ हैं और दो प्रकार के परहेज ।
आपको सुनकर आश्चर्य हो रहा होगा कि यह दवाइयाँ कैसी और परहेज कैसा ? पर यह सत्य है । शरीर के रोग को मिटाने के लिए जिस प्रकार दवा लेनी पड़ती है, उसी प्रकार अज्ञान और मिथ्यात्व रूपी रोग से ग्रसित होने के कारण आत्मा को पुन:-पुन: जन्म और मरण का कष्ट उठाना पड़ता है। उसके निवारण के लिए भी दवा लेनी होती है तभी उससे छुटकारा मिल सकता है।
आत्मिक रोग की औषधियाँ ___ आत्मा के रोग को मिटाने वाली औषधियों में से प्रथम है-"परमत्थ संथवो वा" अर्थात् परमार्थ का परिचय करना । यह किस प्रकार किया जा सकता है ? नव तत्त्वों की जानकारी करने से । जीव क्या है ? अजीव क्या है ? पाप क्या है और पुण्य क्या है ? आश्रम किसे कहते हैं और संवर किसे ? निर्जरा कैसे होती है तथा बंध और मोक्ष क्या हैं ?
जब व्यक्ति इन सबकी जानकारी भली-भांति कर लेता है तभी वह हेय और उपादेय के अन्तर को समझता है। उदारहणस्वरूप-जब वह पाप के परिणाम और पुण्य के महत्त्व को तथा बंध और निर्जरा के लक्षणों को जान लेगा तभी पाप-कर्मों के बँध से बचने का प्रयत्न करेगा तथा पुण्योपार्जन करता हुआ पूर्व बंधे हुए कर्मों की निर्जरा का प्रयत्न करेगा। इस प्रकार परमार्थ का परिचय अथवा नौ तत्त्वों की जानकारी आत्मिक रोगों को दूर करने के लिए दवा साबित हुई न ? अगर इस अचूक औषधि का सेवन व्यक्ति बराबर करे तो निश्चित ही उसे आत्मा की समस्त बीमारियों से छुटकारा मिल सकता है।
अब हमें आत्मिक रोगों की दूसरी औषधि के विषय में जानना है । संसार में अनेक व्यक्ति ऐसे हैं जो घोर ज्ञानावरणीय कर्म का उदय होने के कारण ज्ञान हासिल नहीं कर पाते और उसके अभाव में जीव, अजीवादि तत्त्वों की जानकारी करने में असमर्थ रहते हैं। बेबस होकर वे पूछ बैठते हैं-"हमारे
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