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आनन्द प्रवचन :तृतीय भाग
रानी की बात सुनते ही महाराज जोर से हँस पड़े और बोले-"वाह ! जब मैं ही उसे नहीं ला सका तो तुम क्या ला सकोगी ? व्यर्थ कोशिश करने से क्या लाभ है ?"
पर रानी ने किसी तरह राजा से हाँ कहलवा ली और बछड़े को लाने के लिए नीचे उतर गई । बछड़ा रानी को नित्य देखने के कारण पहचानता था, अतः तुरन्त उसके समीप आ गया। इसके अलावा वह रोज उसे उठाकर ऊपर लाती थी, उस अभ्यासवश शीघ्र हो उस दिन भो उठाकर ऊपर ले आई ।
यह देखकर राजा भौंचक्के से रह गए। बाले-"बड़े आश्चर्य की बात है कि जिसे मैं नहीं उठा सका उसी बछड़े को तुम उठाकर ले आई ? इसका क्या कारण है ? क्या तुम मुझसे अधिक बलवान हो गई हो ?' __रानी हँस पड़ी और नम्रतापूर्वक बोली- “मैं आपसे अधिक शक्तिशाली नहीं हो गई हूँ महाराज ! बात केवल यह है कि मैं साल भर से इसे रोज उठाकर ऊपर लाती हूँ अतः मुझे इसका वजन उठाने का अभ्यास हो गया है और अपने एक वर्ष पूर्व के उस दिन के बाद वजन उठाने का अभ्यास किया ही नहीं, अतः आप एकाएक इसे नहीं उठा सके । शरीर की ताकत अभ्यास से अनेक गुनी बढ़ जाती है और अभ्यास के द्वारा कठिन से कठिन कार्य भी संभव हो जाता है।
संत तुकाराम जी ने भी अभ्यास का महत्त्व बताते हुए एक अभंग में कहा है :
ओले मूल भेदी, खड़काचे अंग,
____ अभ्यासार्शी सांग कार्य सिद्धि ॥ १ ॥ दोरे चिराकापे पडिल्या काचणी,
अभ्यासे सेवनी विष पड़े ॥२॥ कहा गया है-किसी भी कार्य की सिद्धि अभ्यास से ही हो सकती है । ओले यानी गीली । गीली और छोटी-सी कोमल बड़ में भी अगर प्रतिदिन जल डाला जाय तो वह धीरे-धीरे इतनी ताकतवर हो जाती है कि पत्थर को भी भेद देती है। ___ इसी प्रकार जैसा कि हम प्रायः देखते हैं कुए पर चलने वाले चरस की रस्सी जिस पत्थर पर से बार-बार आती और जाती है, उसे इतना घिस देती है कि पत्थर पर गहरा निशान या रास्ता बन जाता है। ___ यही संत तुकाराम जी ने कहा है कि रस्सी भी पुन:-पुनः आने और जाने के कारण पत्थर पर अपना मार्ग बना लेती है। पद्य में आगे कहा
"अभ्यासे सेवनी विष पड़े।"
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