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________________ कल्याणकारिणी क्रिया १३ यह देखकर राजा बोले-"हम दोनों की ताकत समान है, कोई अन्तर नहीं।" रानी ने कोई उत्तर नहीं दिया केवल हंस पड़ी। इसके बाद रानी के मन में न जाने क्या बात आई कि वह प्रतिदिन एक बार नीचे जाती और उस बछड़े को उठाकर ऊपर ले आती तथा वापिस छोड़ भी आती। यह क्रम बराबर एक वर्ष तक चलता रहा, रानी ने एक दिन भी बछड़े को उठाकर ऊपर लाने में नागा नहीं किया । बछड़ा अब एक वर्ष का हो चुका था। ___ अब एक दिन पुनः जबकि राजा ऊपर महल में ही थे, रानी ने कहा"महाराज ! आज हम फिर से देखें कि हम दोनों में से किसी की ताकत घटी तो नहीं ?" राजा ने उत्तर दिया- "न तो हम वृद्ध हुये हैं और न ही रोग-ग्रस्त । फिर ताकत क्यों घटेगी ? वह तो एक वर्ष पहले के समान ही होगी।' 'फिर भी परीक्षा कर ली जाय तो क्या हर्ज है ?" रानी ने आग्रह किया। राजा प्रसन्नता के मूड में तो थे ही, बोले-"अच्छी बात है ऐसा ही सही पर आज किस प्रकार हम अपनी शक्ति की परीक्षा करें ? बछड़ा तो बड़ा हो गया ? "बड़ा हो गया तो क्या हुआ ? हम उसी को उठाकर ऊपर लाने का प्रयत्न करेंगे । आपकी आज्ञा हो तो यह कार्य प्रारम्भ किया जाय ?" "अच्छी बात है ऐसा ही सही । पर मैं सोचता हूँ कि मैं तो किसी तरह उसे उठाकर ले ही जाऊँगा, असफल तुम्हें ही होना पड़ेगा ?" राजा ने पुरुष होने के नाते अपने बल का गर्व किया। रानी मुस्कराई और बोली-"हाथ कंगन को आरसी क्या ? अभी ही परीक्षा का परिणाम ज्ञात हो जाएगा। पहले आप उसे लाने का प्रयत्न कीजिये।" यह सुनकर राजा महारानी को मात देने के इरादे से शीघ्रतापूर्वक नीचे उतर गए तथा बछड़े को लाने की कोशिश करने लगे पर प्रथम तो बछड़ा अचानक ही राजा को देखकर बिदकने लगा तथा इधर-उधर भागने लगा। दूसरे किसी तरह उसे पकड़ा तो साल भर में उसमें काफी बोझ बढ़ जाने के कारण राजा उसे उठा ही नहीं सके । फलस्वरूप वे खाली हाथ लौटे और रानी से अपनी कठिनाई कह सुनाई। सब कुछ सुनकर रानी बोली-"अब आप मुझे इजाजत दें तो मैं भी जाकर प्रयत्न करूं ?" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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