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आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
ध्यान में रखने की बात है कि मनुष्य भले ही अनेकानेक शुभ संस्कारों का धनी बन जाये किन्तु उन्हें कायम रखने के लिये अगर वह क्रिया के रूप में उनका अभ्यास नहीं करेगा तो वे संस्कार उसके लिये लाभप्रद नहीं हो सकेंगे। अभ्यास के द्वारा कुसंस्कारों को सुसंस्कारों में बदला जा सकता है । तथा बुरी आदतों को अच्छी आदतों में परिवर्तित किया जा सकता है। कोई व्यक्ति कितना भी पतित क्यों न हो, उसके लिये यह कहना कि वह कभी सुधर नहीं सकता ठीक नहीं है क्योंकि वह व्यक्ति केवल गलत अभ्यास के वशीभूत होता है और अगर उसे सत्संग मिले तथा शुभ कार्यों को प्रेरणा दी जाये तो धीरे-धीरे उन कार्यों का अभ्यास हो जाने से वह निश्चय ही सुधारा जा सकता है। चरित्र केवल अभ्यास का प्रतीक होता है जो कि नवीन अभ्यास से पुनः बदला जा सकता है। __अभ्यास में असाधारण शक्ति निहित है किन्तु वह धीरे-धीरे प्राप्त होती है । आप लोग बड़े-बड़े पहलवानों को देखते हैं जो कि एक हजार दंड बैठक एक बार में लगा सकते हैं। किन्तु अगर उनसे आप पूछे कि आप में इतनी शक्ति कहाँ से आई तो उत्तर यही मिलेगा कि प्रतिदिन अभ्यास करने से । पहले ही दिन हजार बैठकें लगा लेना स्वस्थ से स्वस्थ व्यक्ति के लिए भी सम्भव नहीं है। वह जब प्रारम्भ करेगा दस, बीस, पच्चीस या अधिक तो पचास बैठकों से भी प्रारम्भ कर लेगा पर हजार बैठकें प्रतिदिन लगाने के लिये उसे बहुत दिनों तक अभ्यास करना ही पड़ेगा। शक्ति की परीक्षा, दिखाई देने वाले स्वस्थ शरीर से नहीं अपितु अभ्यास से की जा सकती है। प्रतियोगिता
कहा जाता है कि एक बार एक राजा और एक रानी अपने महल के झरोखे में बैठे हुए वार्तालाप कर रहे थे तथा बाहर के सुन्दर दृश्यों का अवलोकन भी करते जा रहे थे। अचानक राजा पूछ बैठे-"रानी ! तुम्हारे शरीर में ताकत अधिक है या मेरे शरीर में ?"
रानी यह प्रश्न सुनकर मुस्कराई और बोली
"इस विषय में मैं क्या कहूँ, महाराज ! आजमाइश करके देखना चाहिये।" ____ "हाँ यह बात ठीक है । देखो, महल के नीचे वह गाय का छोटा-सा बछड़ा है कुछ ही दिन का जन्मा हुआ। देखें हममें से कौन उसे उठाकर ऊपर लाता है ?" रानी राजा की इस बात पर सहमत हो गई।
पहले राजा साहब नीचे गये और उस छोटे से बछड़े को गोद में उठाकर ऊपर ले आए तथा पुनः ले जाकर नीचे छोड़ दिया। अब रानी की बारी आई। वह भी नीचे उतरी और बछड़ा छोटा-सा तो था ही अत: वह भी उसे उठाकर ऊपर ले आई और नीचे ले जाकर छोड़ भी दिया।
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