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आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
देखते ही सादर उठीं और उन्हें नमस्कार किया। महात्मा जी गंभीरतापूर्वक उनकी ओर देखते हुए बोले
रानि तुमको विपत्ति अति, सुत खायो मृगराज । __ हमने भोजन ना किया, इसी मृतक के काज ॥ अर्थात्-"महारानी! आज तुम पर भयंकर विपत्ति आ गई है ।" महारानी ने आश्चर्य से पूछा- क्या विपत्ति महाराज ?" ऋषि ने कहा- "आज तुम्हारे पुत्र का मृगराज सिंह ने भक्षण कर लिया है। इसीलिये मैंने भी भोजन नहीं किया और दौड़ा हुआ आपको समाचार देने आया हूँ।" ___ यह आश्चर्य है कि एक माता जिसके लिए उसका पुत्र आँखों का तारा होता है तथा वह कुपुत्र भी हो तो उसके लिए हृदय में कभी नफरत नहीं लाती, स्वयं अनेकानेक कष्ट सहकर अपने पुत्र का पालन-पोपण करती है । कहते भी हैं :
'मात्रा समं नास्ति शरीर पोषणम् ।" "माता के समान पुत्र के शरीर का पोषण करने वाला अन्य कोई नहीं होती।" उसी माता का दिल रखने वाली महारानी ने ऋषि को उत्तर दिया
एक वृक्ष ड लें घनी, पंछी बैठे आय ।
यह पाटी पीरी भई, उड़-उड़ चहुँ दिश जायें ॥ क्या कहा माता ने ? यही कि "जिस वृक्ष पर सघन डालियां होती हैं, पक्षी उस पर आकर विश्राम लेते हैं। किन्तु पतझड़ के आते ही सब उड़-उड़ कर भिन्न-भिन्न दिशाओं में चले जाते हैं । तो पुत्र का निधन हो गया तो क्या हुआ। हम सभी तो पक्षी हैं और एक दिन यहाँ से रवाना होकर अपनीअपनी राह पकड़ेंगे।"
ऋषि को राजकुमार की बात सत्य महसूस हुई और वे विचार करने लगे कि वास्तव में ही यहाँ सब मोह को जीते हुए हैं । पर परीक्षा लेने में राजा ब.की थे अत: अब वे राजा समीप में पहुंच गए।
महाराज दरबार में अपने सिंहासन पर आसीन थे। ऋषिराज को आते देखा तो उनकी उचित अभ्यर्थना करके योग्य आसन प्रदान किया तथा आदरपूर्वक पूछा - "भगवन् ! कैसे पधारना हुआ ?" ___ऋष ने अपनी पूर्ववत् गंभीरता कायम रखी और तेज नेत्रों से राजा को देखते हुए बोले--
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