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________________ समय से पहले चेतो 1 तू सुन चेरी श्याम की बात सुनावो तोहि । कुँवर विनास्यो सिंह ने, आवन परिओ मोहिं ॥ संत ने विचार किया कि दासी मेरी बात सुनकर रोती-पीटती महल के अन्दर दौड़ेगी, इसलिए, बोला- “अरी श्याम की दासी ! तुम्हारे राजकुमार को वन में सिंह ने मार डाला है, अतः मुझे यह समाचार लेकर आना पड़ा है ।" किन्तु दासी शान्तभाव से बोली - ना मैं चेरी श्याम की, नहिं कोई मेरो श्याम । प्रारब्धवश मेल यह, सुनो ऋषि अभिराम ॥ ऋषि दासी की बात और उसकी शांति देखकर चकित हुए और महल में आगे बढ़े । महल में उन्हें राजकुमार की पत्नी मिली । राजकुमार की धु संत को प्रणाम किया और प्रश्नसूचक दृष्टि से उनकी ओर देखा । संत ने बड़ी गंभीरता से कहा तू सुन चातुर सुन्दरी, अबला यौवनवान ! देवी-वाहन-दल मल्यौ, तुम्हरो श्री भगवान ॥ Jain Education International २६६ अर्थात् हे वनयोवना चतुर सुन्दरी ! आज महादेवी दुर्गा के ने तुम्हारे परमेश्वररूप पति का दलन कर दिया है अर्थात् उन्हें मार वाहन सिंह डाला है । राजबधु ने ऋषि की बात सुनी, क्षणभर शांत रही, पर उसके पश्चात् बोली तपिया पूरब जनम की, क्या जानत है लोक । मिले कमवश आन हम, अब विधि कोन वियोग ॥ संत को महान आश्चर्य हुआ । सोचने लगे विलाप करती पतिव्रता नारी जहाँ स्त्रियाँ पति की मृत्यु की आशंका करते ही कांपने लगती हैं और उसकी मृत्यु हो जाने पर तो छाती पीटती हुई हृदय विदारक हैं तथा सारा वातावरण अपने रुदन से भर देती हैं, वहाँ यह अपने पति की मृत्यु की बात सुनकर भी स्थिर चित्त से कह रही है - " तपस्वी जी ! लोग भाग्य के खेल को कैसे पूर्व में न जाने कैसे-कैसे कर्म किये होंगे, जिनके कारण इस जन्म में पति-पत्नी के रूप में आ मिले थे । पर अब वह संयोग समाप्त हो गया है, अतः विधाता ने हमें अलग-अलग कर दिया है। बस इतनी-सी तो बात है ।" वधु की निर्मोहता पर विचार करते हुए ऋषि अब राजकुमार की माता के पास पहुँचे | महारानी अपने किसी कार्य में व्यस्त थीं । महात्मा को For Personal & Private Use Only खड़ी है तथा उलटे समझ सकते हैं ? www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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