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________________ २६४ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग "नहीं।" "क्या तुम लोग बता सकते हो कि जीभ तो कोमल होते हुये भी मुह में स्थित है और दांत इतने कड़े होने पर भी क्यों झड़ गये ?" हमारी समझ में तो नहीं आता गुरुदेव ! यह बात आप ही स्पष्ट कीजिए।" कन्फ्यूशियस ने कहा - "देखो, इसका कारण समझना कठिन नहीं है। जबान अपनी कोमलता के कारण ही टिकी रहती है तथा दांत अपनी कठोरता के कारण झड़ जाते हैं । अगर तुम लोगों को भी अपना जीवन सुन्दर बनाना है तो अपने स्वभाव में मृदुता रखो। कठोरता और कर्कशता जीवन को असुन्दर तो बनाती है, कभी-कभी प्राण-घात का कारण भी बन जाती हैं । स्वभाव की मधुरता हृदय में विनय गुण को विकसित करती है और विनय के द्वारा अनेकानेक गुणों का जीवन में अविर्भाव होता है।" ___ तो मैं आपको बता तो यह रहा था कि भगवान ने कहा है- इन्द्रियाँ निरंतर क्षीणावस्था को प्राप्त होती जा रही हैं अतः समय-मात्र का भी प्रमाद मत करो। मृत्यु तो बालक के जन्मते ही ताक लगाकर रहती है। अंग्रेजी में अगर आप किसी दस वर्ष के बालक की उम्र पूछते हैं तो आपको यही उत्तर मिलता है - "This child is ten years old." यह बच्चा दस वर्ष पुराना है । कहने का मतलब यही है कि प्रत्येक व्यक्ति जन्म लेने के साथ ही पुराना होने लगता है। शैशवास्था में जो सरलता, भोलापन एवं चुलबुलापन रहता है, वह युवावस्था में नहीं रहता तथा युवावस्था में जो शक्ति, सामर्थ्य, स्मरणशक्ति, बुद्धि तथा तेज रहता है वह बुढ़ापे में लोप होने लगता है। शक्ति क्षीण हो जाती है, इन्द्रियाँ निष्क्रय होने लगती हैं, रंग बदल जाता है तथा त्वचा झुर्रियों से भर जाती है। कवि सुन्दरदास ने भी कहा हैजब से जनम लेत, तब से ही आयु घटे, माई तो कहत, मेरो बड़ो होत जात है। आज और काल दिन-दिन होत और, दोर्यो-दोर्यो फिरत खेलत और खात है ।। बालापन बीत्यो, अब यौवन लग्यो हैं आय, यौवनहु बीते, बूढो डोकरो दिखात है। 'सुन्दर' कहत ऐसे देखत है बूझि गयो, तेल घटि गये जैसे दीपक बुझात है ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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