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मानव जीवन की सफलता
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श्वास ही की आस फेर कौन विसवास करे,
ले जावन माहीं करे छार तन जारि के। अमीरिख कहे आय, बसे थे जगत मांही,
अन्त को सिधाये महिमान दिन चार के ॥
कहा है- "अरे मूढ़ । जीव ! तू इस जगत में आकर विषय-सुख मैं आसक्त बना हुआ गर्व से फूला नहीं समाता । लगता है कि काल का तुझे तनिक भी भय नहीं है । तभी तो अनिवार्य रूप से आने वाली मृत्यु के डर को हृदय से विसार कर अपने धन-वैभव तथा कुटुम्बियों के मोह में आसक्त बना हुआ है।
किन्तु याद रख ! इस जगत में तू तो क्या चीज है, तेरे से भी अधिक समृद्धिशाली पुरुष और बड़े-बड़े राजा महाराजा भी इस संसार में आकर विलीन हो गए हैं । काल उन्हें इस प्रकार जड़-मूल से उखाड़कर ले गया है कि आज उनका चिह्न भी कहीं दिखाई नहीं देता।
क्या तू यह नहीं जानता कि जब तक तू कुटुम्बियों के लिए पचता रहता है, उनके लिए नाना प्रकार के पाप-कर्म और अनीति कर करके अर्थ का उपार्जन करता है तथा तेरी सांस चलती है तभी तक मुझे सब चाहते हैं पर श्वास के समाप्त होते ही वे ही लोग एक क्षण का भी विलम्ब किये बिना तेरी देह जलाकर राख कर देते हैं । यही तो संसार का नियम है कि जो भी इस पृथ्वी पर आता है चार दिन मेहमान के समान रहकर अन्त में सब छोड़छाड़कर यहाँ से सिधार जाता है ।
___ कहने का अभिप्राय यही है कि मनुष्य को अपने दुर्लभ जीवन और इसकी क्षण-भंगुरता को समझकर अपने एक-एक क्षण का सदुपयोग करना चाहिए। उसे प्रतिपल यह ध्यान रखना चाहिए कि मुझे कोटि पुण्यों के फलस्वरूप जो पर्याय मिली है इसे कैसे सार्थक बनाया जाय ? ।
मानव की जीवन सफलता
मनुष्य जीवन की सफलता के विषय में लोगों के विचार भिन्न-भिन्न प्रकार के होते है । कुछ व्यक्ति जीवन की सफलता अटूट धन की प्राप्ति में समझते हैं, कुछ दुनिया के द्वारा यश और प्रसिद्धि प्राप्त करने में तथा कुछ व्यक्ति अधिक से अधिक सांसारिक सुखों का उपयोग करने में । ऐसे व्यक्तियों की दृष्टि केवल बाह्य संसार तक ही सीमित रहती है और वे इस जन्म को ही सुखी बनाना अपना सर्वोतम लक्ष्य मान लेते हैं।
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