________________
२४०
आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
का आयुष्य इसने समाप्त हो जाता है । मनुष्य के जीवन को भी इसी प्रकार काल रूपी चूहे समाप्त कर देते हैं।
काल की शक्ति
हम सदा देखते हैं कि यह अनन्त बलशाली काल हमारे देखते-देखते ही नए को पुराना बनाता है और पुराने को नष्ट कर देता है। काल की शक्ति को अथवा इसकी गति को कोई नहीं रोक पाता । एक पल का भी विलम्ब किये बिना तथा एक पल की भी विराम लिए बिना निर्बाध रूप से यह अपना कार्य किये जाता है। बच्चे को युवा, युवा को वृद्ध बनाता हुआ एक दिन वह उसे इस संसार से ले जाता है । __ खेद है कि अपनी आंखों से यह सब देखते हुए भी हम इस अल्प-जीवन का लाभ नहीं उठाते तथा हमारा मन इस संसार से विरक्त नहीं होता।
संस्कृत के एक श्लोक से कहा गया है
प्रतिदिवसमनेकान् प्राणिनो नि.सहायान् । मरणपथगतांस्तान प्रेक्षते मानवोऽयम ॥ स्वगतिमपि तथा ताम बुध्यते भाविनी वा ।। तदपि नहि ममत्वं दुःखमूलं जहाति ॥
कवि का कथन है-प्रतिदिन अनेकानेक प्राणी निस्सहाय के समान मृत्यु के मार्ग पर जाते हैं । हम स्वयं भी देखते हैं कि काल बली के सामने किसी का वश नहीं चलता। साथ ही हम भी जानते हैं कि हमें भी एक दिन इसका शिकार बनना पड़ेगा किन्तु फिर भी दु.ख के मूल ममता का हम त्याग नहीं कर पाते।
एक दिन मुझे भी मरना है, यह भली-भांति जानते हुए भी व्यक्ति मोहमाया में अधिकाधिक फँसता चला जाता है । वह अधिकाधिक परिग्रह इकट्ठा करता है तथा जीवन के अन्त तक भी उसे छोड़ना नहीं चाहता है ।
पूज्यपाद श्री अमीऋषि जी महाराज ने इसीलिए मानव को चेतावनी देते हुए लिखा है
खलक में आय ललचायो है विषय सुख,
फूलो फिरे काल भय चित्त से विसार के। बड़े-बड़े राया घनछाया ज्यों विलाय ताको,
लेइ गयो काल जड़ामूल ते उखार के ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org