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मानव जीवन की सफलता
धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो !
कल के प्रवचन में मैंने शिष्य गौतम को बार-बार हे गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत करो ।
बताया था कि भगवान महावीर ने अपने प्रधान कहा था - "सयमं गोयम मा पमायए ।" अर्थात्
मैंने यह भी कहा था कि भगव न का यह उपदेश केवल गौतम स्वामी के लिये ही नहीं था अपितु उनके समस्त शिष्यों के लिये, अन्य समस्त साधुसाध्वियों के लिये तथा श्रावक श्राविकाओं के लिये था । आज भी वह उपदेश इसी प्रकार हमारे और आप सभी के लिये है ।
भगवान ने गौतम को उपदेश देते हुए एक गाथा और कही थी वह इस प्रकार है
ss इत्तरियम्मि आउए, विहणाहि रयं पुरे कडं
जोवियए बहु पच्चवायए । समयं गोयम मा पमायए ॥
कहा है- 'हे गौतम ! यह मनुष्य का आयुष्य अत्यल्प है और उसमें भी अनेकानेक विघ्न आते रहते हैं इसलिये बिना विलम्ब किये पूर्वकृत कर्म रूपी रज को आत्मा से अलग करो तथा जीवन को कल्याणकारी मार्ग पर लगाओ ।
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कल मैंने आपको बताया था कि यह जीवन एक वृक्ष के समान है जिसमें बचपन रूपी अंकुर, फल एवं फूलों से लदा हुआ यौवन तथा वृद्धावस्था के समान पतझड़ आता है तथा उसके पश्चात् सब खत्म हो जाता है, कहानी मात्र रह जाती है |
कोई प्रश्न करता है कि यह सब क्यों हो जाता है ? क्यों यह जीवन रूपी वृक्ष इस प्रकार समाप्त होता है ? उत्तर में यही कहा जाता हैआयुष्य रूपी चूहे इसे कुतरते रहते हैं । चूहे दो प्रकार के कहे जा सकते हैं एक सफेद और दूसरा काला । दिन रूपी चूहा श्वेत रंग का है और रात्रि रूप काले रंग का । ये दोनों बारी-बारी से वृक्ष को कुतरते रहते हैं तथा वृक्ष
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