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मुक्ति का मूल : श्रद्धा
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मुक्ति प्राप्त कर लेते हैं । किन्तु उनसे कम ज्ञान रखने वाले भी तीसरे, सातवें, और फिर भी नहीं तो पन्द्रहवें भव में भी मोक्ष को प्राप्त कर ही लेते हैं । ज्ञान का धागा इस जीव रूपी सुई को खींच ही लेता है। अनन्त संसार में सदा के लिये खो जाने नहीं देता।
___ गाथा में आगे कहा गया है--ज्ञान से विनय, तप और चारित्र की प्राप्ति होती है। तो पहली बात यह है कि ज्ञान विनय के द्वारा प्राप्त किया जाए। अगर अविनय का मन में उदय होगा तो ज्ञान का विकास रुक जाएगा। एक उदाहरण है--
शान वृद्धि में रोक
किसी गांव में एक बढ़ई रहता था। वह पुराने जमाने का था, अत: साधारण वस्तुएँ बनाया करता था। किन्तु उसका लड़का नए ढंग की वस्तुएँ बनाना सीख गया क्योंकि वह अपने काम में काफी होशियार हो गया था।
लड़का प्रायः नई-नई वस्तुएँ या मूर्तियाँ बनाकर पिता के पास लाया करता था । बढ़ई अपने पुत्र की कला कुशलता पर मन ही मन अत्यन्त प्रसन्न होता तथा गौरव का अनुभव करता था किन्तु फिर भी उसके काम में अधिक से अधिक चातुर्य लाने की भावना से वह पुत्र की बनाई हुई वस्तु में कुछ न कुछ नुक्स निकाल देता था। यथा--'इसके दोनों हाथ समान नहीं हैं, अथवा आँखें ठीक नहीं बनी हैं ।'
लड़का आँखें ठीक करके लाता तो पिता कह देता-'इसका पैर टेढ़ा है।' इस सबका परिणाम यह हुआ कि बढ़ई का पुत्र अपने कार्य में अत्यन्त प्रवीण हो गया।
किन्तु एक दिन बात बिगड़ गई। पुत्र अत्यन्त परिश्रम करके एक बड़ी उत्कृष्ट कलाकृति का निर्माण करके लाया और बोला-"पिताजी ! देखिये ! आज मैंने कितनी सुन्दर चीज बनाई है ?
पिता अत्यन्त हर्षित हुआ किन्तु अपनी आदत के अनुसार बोला-"बेटा ! चीज तो तुमने बहुत अच्छी बनाई है पर फिर भी इसकी सुन्दरता में कुछ कमी रह गई है।" ___लड़का पिता के द्वारा प्रतिदिन नुक्स निकाले जाते रहने के कारण कुछ अप्रसन्न तो रहता ही था पर आज अपनी अत्यन्त परिश्रम से बनाई हुई कृति में भी पिता के द्वारा कमी निकाली जाती देखकर क्रुद्ध हो गया और गुस्से से बोला
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